Thursday, May 15, 2014

भाग्य से सौदा



बहुत वर्ष हुए हमने भाग्य से एक सौदा किया था, और अब अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का समय आया है- पूरी तौर पर या जितनी चाहिये उतनी तो नहीं, फिर भी काफी हद तक. जब आधी रात के घंटे बजेंगे जबकि सारी दुनिया सोती होगी, उस समय भारत जगकर जीवन और स्वतंत्रता प्राप्त करेगा. एक ऐसा क्षण आता है जो कि  इतिहास में कम ही आता है, जबकि हम पुराने को छोड़कर नए जीवन में पग धरते हैं जबकि एक युग का नत होता है , जबकि राष्ट्र की चिर दलित आत्मा उद्धार प्राप्त करती है. यह उचित है कि इस गंभीर क्षण में हम भारत और उसके लोगों और उससे भी बढ़कर मानवता के हित के लिए सेवा अर्पण करने कि शपथ लें.

  इतिहास के ऊषाकाल में भारत ने अपनी अनंत खोज आरम्भ की दुर्गम सदियाँ, उसके उद्योग, उसकी विशाल सफलता और उसकी असफलताओं से भरी मिलेंगी. चाहे अच्छे दिन आये हों , चाहे बुरे उसने इस खोज को आँखों से ओझल नहीं होने दिया. न उन आदर्शों को ही भुलाया जिनसे उसे शक्ति प्राप्त हुयी. आज हम दुर्भाग्य कि एक अवधि पूरी करते हैं और भारत अपने आपको फिर पहचानता है. जिस कीर्ति पर हम आज आनंद मना रहे हैं, वह और भी बड़ी कीर्ति और आने वाले विजयों कि की दिशा में एक पग है और आगे को अवसर देने वाली है. इस अवसर को ग्रहण करने और भविष्य कि चुनौती स्वीकार करने के लिए क्या हममें काफी साहस और काफी बुद्धि है?

स्वतंत्रता और शक्ति जिम्मेदारी लाती है. वह जिम्मेदारी इस सभा पर है जो कि भारत के सम्पूर्ण सत्ताधारी लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली सम्पूर्ण सत्ताधारी सभा है. स्वतंत्रता के जन्म से पहले हमने प्रसव कि सारी पीड़ाएं सहन की हैं और हमारे ह्रदय इस दुःख कि स्मृति से भरे हुए हैं. इनमें से कुछ पीड़ाएं अब भी चल रही हैं. फिर भी अतीत समाप्त हो चूका है और भविष्य ही हमारा आह्वान कर रहा है.

यह भविष्य आराम करने और दम लेने के लिए नहीं है बल्कि निरंतर प्रयत्न करने के लिए है. जिससे कि हम उन प्रतिज्ञाओं को जो हमने इतनी बार कि हैं और उसे जो आज कर रहे हैं , पूरा कर सकें . भारत की सेवा का अर्थ करोड़ों पीड़ितों कि सेवा है. इसका अर्थ दरिद्रता और अज्ञान और अवसर कि विषमता का अंत करना है.

 हमारी पीढ़ी कि सबसे बड़े आदमी कि यह आकांक्षा रही है कि प्रत्येक आँख के प्रत्येक आंसू को पोंछ दिया जाए. ऐसा करना हमारी शक्ति से बाहर हो सकता है, लेकिन जब तक आंसू और पीड़ा है तब तक हमारा काम पूरा नहीं होगा.

इसलिए हमें काम करना है और परिश्रम करना है और कठिन परिश्रम करना है जिससे कि हमारे स्वप्न पूरे हों . ये स्वप्न भारत के लिए हैं, क्योंकि आज सभी राष्ट्र और लोग आपस में एक दुसरे से गुंथे हुए हैं कि कोई भी बिल्कुल अलग होकर रहने कि कल्पना नहीं कर सकता

---- नई दिल्ली में स्वतंत्रता प्राप्ति की पूर्व संध्या पर 14 अगस्त 1947 को श्री जवाहर लाल नेहरु द्वारा दिया गया भाषण 

23.04.99