Wednesday, October 8, 2014

मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है

मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है
सड़कें - बेतुकी दलीलों सी…
और गलियां इस तरह
जैसे एक बात को कोई इधर घसीटता
कोई उधर
हर मकान एक मुट्ठी सा भिंचा हुआ
दीवारें-किचकिचाती सी
और नालियां, ज्यों मूंह से झाग बहती है

यह बहस जाने सूरज से शुरू हुई थी
जो उसे देख कर यह और गरमाती
और हर द्वार के मूंह से
फिर साईकिलों और स्कूटरों के पहिये
गालियों की तरह निकलते
और घंटियां हार्न एक दूसरे पर झपटते
जो भी बच्चा इस शहर में जनमता
पूछता कि किस बात पर यह बहस हो रही?

फिर उसका प्रश्न ही एक बहस बनता
बहस से निकलता, बहस में मिलता…
शंख घंटों के सांस सूखते
रात आती, फिर टपकती और चली जाती
पर नींद में भी बहस खतम न होती
मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है…

- अमृता प्रीतम 

Wednesday, June 11, 2014

प्रेम में स्मृति का ही सुख है

प्रेम में स्मृति का ही सुख है . एक तीस उठती है, वही तो प्रेम प्राण है. आश्चर्य तो यह है कि प्रत्येक कुमारी के ह्रदय में वह निवास करती है, पर उसे सब प्रत्यक्ष नहीं कर सकती, सबको उसका मार्मिक अनुभव नहीं होता. 

- नमालूम

06.09.99

घास पर अपने आंसुओं में छोड़ जाती हूँ.

सूर्य से रात्री कहती है- चन्द्रमा के द्वारा तुम मुझे प्रेम पत्र भेजा करते हो. मैं तुम्हारे उन पत्रों के उत्तर घास पर अपने आंसुओं में छोड़ जाती हूँ.

- नमालूम

पहला आंसू

पहला आंसू  शायद कठिनाई से बाहर निकलता है , किन्तु उसके बाद अन्तिम आंसू कठिनाई से रुकता भी है

- नमालूम

प्यार से ही त्याग की भावना आती है

प्यार किये बिना हम कुछ नहीं कर सकते . प्यार से ही त्याग की भावना आती है और त्याग ही मानव को सच्चे अर्थों में मानवीय बनाता है, स्वार्थ से उठाता है ..

- महात्मा गांधी

कोई दूर होते हुए भी पास लगता है

आग नजदीक होती है तभी आंच देती है. परन्तु इन दिलों की बात अलग है . कोई दूर होते हुए भी पास लगता है और कोई पास होते हुए भी दूर.

- नमालूम

हवा के झोंके बुझाना चाहते हों

उस अंधेरे में तारों की झीनी रौशनी में और दूर खम्बे पर बिजली के प्रकाश में उसके चेहरे पर मुस्कान  और आसुंओं का मिला जुला असर बड़ा ही सुन्दर लग रहा था. वैसे भी आंसुओं को रोकने और मुस्कराने की कोशिश में नारी के मुख पर एक तेज आ जाता है , जैसे एक दीपक हो जो जलना चाहता हो परन्तु जिसे हवा के झोंके बुझाना चाहते हों.

- नमालूम

जो कुछ विशेषकर उसके लिए होता है

मानव जिससे प्रेम करता है , उससे सब कुछ पाने की आशा करता है. वह जो सबके लिए नहीं होता है, जो कुछ विशेषकर उसके लिए होता है .

- नमालूम

बातें करते-करते कई बातें छिपा जाती जाती है

प्रत्येक नारी बातें करते-करते कई बातें छिपा जाती जाती है. वह जीवन में सभी कुछ सम्पूर्ण चाहती है , पर बातों को वह अपूर्ण ही छोड़ती है. मैंने उसके चेहरे की ओर देखा था. उस पर शांति थी, कोई चिंता, कोई उत्कंठा न थी. दूसरे के मन में तृष्णा जगाकर दूर पे जाने में नारी को आनंद मिलता है

- नमालूम

आज भी उन दिनों को याद कर

आज भी उन दिनों को याद कर  मन में एक कम्पन पैदा हो जाता है . एक पीड़ा समूचे असितत्व को घेर लेती है. नंदनी, कभी-कभी ऐसा क्यों होता है कि कोई व्यक्ति हमारे लिए समूचा संसार बन जाता है ? उस समय ऐसा लगता है , हमारी सारी प्रसन्नता , हमारा सब कुछ उस व्यक्ति पर निर्भर है हमारा जीवन , हमारी मुक्ति भी उस पर आधृत है .

- नमालूम

.......... ऐसा लग रहा था मानो

.......... ऐसा लग रहा था मानो मुझे सब कुछ मिल गया था और उसके बाद मुझे किसी अन्य वस्तु की जरूरत न थी. मेरे मन का प्याला छलकने लगा था, अब उसमें एक बूँद भी जगह नहीं थी. रात की खामोशी में मुझे सुकून मिल रहा था. मुझे यह सोचते हुए आश्चर्य लग रहा था कि ऋषि - मुनि हिमालय की कंदराओं में जाकर शान्ति की प्राप्ति की तपस्या क्यों करते हैं. इस दुनिया में ही किसी प्रियजन के पार्श्व में बैठकर भी सम्पूर्ण शान्ति प्राप्त की जा सकती है. ऐसे समय में पूर्णतः के क्षणों को बार-बार छुआ जा सकता है. सुदूर को अपने ही निकट पाया जा सकता है.

- नमालूम

वो और मैं कभी-कभी समुद्र तट पर

वो और मैं कभी-कभी समुद्र तट पर अकेले बहुत दूर निकल जाते थे. वहाँ जहाँ कोई नहीं होता था. केवल किनारा, लहरें होती थीं. और समुद्र की आवाज़ आसमान में फ़ैल जाती थी. हम डॉ बिन्दुओं की तरह उस अथाह कुदात में गम हो जाते थे. ऐसे में कभी-कभी सृष्टि में खो जाने पर कितना बड़ा आनंद मिलता है. वहां खड़े होकर बहुत दूर ढलते हुए सूर्य को देखते थे. वह दृश्य हमारे समूचे असितत्व को झकझोर कर  रख देता था. हम बिलकुल खामोश हो जाते थे.

- नमालूम

स्त्री कितनी ही बुद्धिमती हो

स्त्री कितनी ही बुद्धिमती हो, कितनी भी साहसी हो, परन्तु जीवन के ऐसे अवसरों पर, जब वह किसी पुरुष को चाहने लगती है. वह सब कुछ भुला बैठती है. वास्तव में ऐसे अवसरों पर वह अपनी स्वामिनी स्वयं नहीं होती है. वह बेबस कठपुतली की तरह चलती है और उसे चलाने वाला होता है वह पुरुष ,  जिसे वह उस समय भगवान से भी अधिक समझती है.

- नमालूम

दुनिया में आईना नहीं होता तो इंसान कभी बूढ़ा नहीं होता

मुझे कभी-कभी ऐसा लगता है कि अगर दुनिया में आईना नहीं होता तो इंसान कभी बूढ़ा नहीं होता . इंसान का दिल तो कभी बूढ़ा नहीं होता. मेरा मन आज भी घायल है . आज मैं सारी रातें रोते गुजारता हूँ .

- नमालूम

हारे -हारे हम तो दिल से हारे

हारे -हारे हम तो दिल से हारे

तेरी याद में पागल पल-पल रोता है
बिन तेरे न जागे ये न सोता है
अक्सर तन्हाई में तुम्हें पुकारे
न जोर दिल पे चले
हारे -हारे हम तो दिल से हारे

अब जाने हम ये प्यार क्या है
दर्दे जिगर मुश्किल बड़ा है
सुनता नहीं कहना कोई भी
दिल बेखबर ज़िद पे अड़ा है
समझाऊं कैसे इसे जाने जां
हारे -हारे हम तो दिल से हारे

हर आईना टूटा लगे है
सच्चा भी हमें झूठा लगे है
जाने कहाँ हम आ गए हैं
सारा जहाँ रूठा लगे है
क्या दर्द दिल ने दिया क्या कहें
हारे -हारे हम तो दिल से हारे

- नमालूम
19.06.2000

वफ़ा हमने की पर वफ़ा न मिली

ज़िन्दगी से हमें मुहब्बत न मिली
वफ़ा हमने की पर वफ़ा न मिली

मेरा महबूब है नाम है बेवफा
जो कर  न सका हमसे वफ़ा
दिल ने चाहा था जिसको
हमें न मिली
वफ़ा हमने की पर वफ़ा न मिली

शाम आती है हमको रुलाने के लिए
रात आती है हमको सताने के लिए
दिल में रहती थी जो
वो हमें न मिली
वफ़ा हमने की पर वफ़ा न मिली

जिस ख़ुशी की तलाश था मैं कर रहा
न मिली जब वो मैं तो ग़म पी गया
दिल ने चाहा था मिलना
जुदाई मिली
वफ़ा हमने की पर वफ़ा न मिली

- 'एक अपना'

लेकर रिमझिम फुहारें

आज फिर सावन आया
लेकर रिमझिम फुहारें
चहुँ ओर पक्षी बोले
बच्चे भीगे ले किलकारें
हमें भी अपना बचपन याद आया
जब खेला करते थे हाट बजारें
वो बचपन की गुजरी फुहारें

कर  गया नम पलकों की कतारें
अब बोझिल हो चला मन
एक सूनापन आ रहा पैर पसारे
जीवन अब एक संग्राम बन गया
फिर भी यह आश है
एक दीपक आएगा पुंज पसारे
जो जीवन में भर देगा हिल्कारें

- 'अज्ञात'
04.09.99

फकत इतना कहा था हमने उससे तुम बड़े वो हो

मेरा दिल कांच का टुकड़ा नहीं जो टूट जायेगा
समन्दर है कोई दरिया नहीं जो सूख जायेगा

सब कुछ भूलकर तुमको गले से फिर लगा लें हम
किसी का क्या पता कोई कहाँ पे छूट जायेगा

बहुर मायूस होकर दिल सरे बाज़ार रख आये
कोई दिल लूटने वाला लुटेरा लूट जायेगा

फकत इतना कहा था हमने उससे तुम बड़े वो हो
खबर क्या थी कि इतनी बात पे वो रूठ जायेगा

वहीँ पे जख्म  है , देखो दिया था जो तुमने
हमें लगता है, ये नासूर बनकर फूट जायेगा

- 'कशिश'

उनकी महफ़िल का आलम

नशा है उनकी आँखों का
पीने का बहाना करते हैं

मरने की तमन्ना है उन पर
जीने का बहाना करते हैं

देख के मेरा जख्मे जिगर
वो चैन की साँसें लेते हैं

छाई है ख़ुशी उनके दिल में
ग़म का बहाना करते हैं

उनकी महफ़िल का आलम
यारो मत पूछो, क्या कहना
दिल करता है कुछ रुकने को
हम जाने का बहाना करते हैं

आशिक तेरा कोई घर है न दर
ये सोच के वो मुड़ जाते हैं

रखने के लिए बस दिल तेरा
आने का बहाना करते हैं

- 'कशिश'

04.09.99

तुमसे बिछुड़कर

तुमसे बिछुड़कर
दर-दर भटकता
उड़ता , फड़फड़ाता
परकटे पक्षी की तरह
चिचियता , भटकता, अटकता
निराशा की अग्नि में जलता

मैंने नहीं रोका था
नई कोपलों को
नहीं टोका था
तुम्हारे फैसलों को
फिर क्यों हुआ वंचित
तुम्हारे प्यार से
तुम्हारे दिए श्रृंगार से

कुछ तो बोलो-
तुमने तो कहा था
मैं हूँ अमृत पुत्र , नहीं क्षुद्र
फिर क्यों सताता है रूद्र

तुम्हारे रहते हुए
सबने मुझे - 'सूखापात' क्यों कहा ?
और क्यों  मुझे बुहार दिया
कहीं छोड़ दिया , कहीं जला दिया
तुम्हारी सत्ता के रहते
तुम्हारी महत्ता के रहते
मैं निराश्रित क्यों रहा ?

- नरेन्द्र मोहन

Tuesday, June 10, 2014

वो चांदनी का बदन खुशबुओं का साया है

वो चांदनी का बदन खुशबुओं का साया है
बहुत अजीज़ हमें है पर पराया है

उतर भी आओ कभी आसमां के सीने से
तुम्हें खुदा ने हमारे लिए बनाया है

उसे किसी की मुहब्बत का एतवार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है

महक रही है जमीं चांदनी के फूलों से
खुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कराया है

- नमालूम
03.09.99


धूप का राही आ बैठा हैजुल्फ के साए में

धूप का राही आ बैठा हैजुल्फ के साए में
जिस्मो जां ने सुकूं पाया है जुल्फ के साए में

तेरी आँखों से पीते हैं लबों के प्याले
ग़ज़ल के शेरों को सोचा है जुल्फ के साए में

धड़कन से धड़कन का रिश्ता जिससे जुड़ता है
दिल ने ऐसे ख़त लिखे हैं जुल्फ के साए में

दिल के अरमानों ने जिन पर चलना सीखा है
वो हर रास्ता रुक जाता है जुल्फ के साए में

- नमालूम

मेरी पलकों पे थोड़ी नमी रह गयी

ये कसक दिल की दिल में चुभी रह गयी
ज़िन्दगी में तुम्हारी कमी रह गयी

एक मैं एक तू एक दीवार थी
ज़िन्दगी आधी-आधी बटी रह गयी

मैंने रोका नहीं वो चला भी गया
बेबसी दूर तक देखती रह गयी

रात की भीगी-भीगी छतों की तरह
मेरी पलकों पे थोड़ी नमी रह गयी

- नमालूम

कैसे भूल जाऊं उसकी महकी सी बातों को

बेदर्दी से प्यार का सहारा न मिला
ऐसा बिछड़ा वो मुझसे दोबारा न मिला

टूट गया प्यार का सुहाना सपना
वही निकला बेगाना जिसे जाना अपना
इस ग़म की कश्ती को किनारा न मिला

सो जाये ज़माना मैं जागूं रातों को
कैसे भूल जाऊं उसकी महकी सी बातों को
बेदर्दी से प्यार का सहारा न मिला

रोता है दिल उसे याद करके
वो तो चला गया मुझे बर्बाद करके
उसकी याद से दिल करार न मिला

- नमालूम

तेरे बिना दिल मेरा इक पल भी नहीं लगता

तेरे बिना दिल मेरा इक पल भी नहीं लगता
आ जाओ हरजाई ग़म मेरा नहीं घटता

कैसे काटूँ कटती नहीं है ग़म की ये काली रातें
याद मुझे है आज जुदाई की बातें
बहता मेरी आँखों का ये दरिया नहीं थमता

राहे वफ़ा में दर्द के हाथों ऐसे मुझे मजबूर न कर
देख मुझे तू नज़रों से अपनी दूर न कर
जीवन का सफ़र तन्हा अब मुझसे नहीं कटता

देख मैं दिल के जख्मों की इस आग में जलता हूँ
भीड़ में ग़म की तन्हा चलता रहता हूँ
बादल ये जफ़ाओं का मेरे सर से नहीं छटता

- नमालूम

देख लो आवाज़ देकर पास अपने पाओगे

देख लो आवाज़ देकर पास अपने पाओगे
आओगे तन्हा मगर तन्हा नहीं तुम जाओगे
बेवफाई भी करो तुम तो भी हम कुछ न कहेंगे
हम न वादे से फिरेंगे तुम मगर फिर जाओगे

-नमालूम
26.07.99

जिस दिल ने तुझको चाहा था

जिस दिल ने तुझको चाहा था
जिस दिल ने तुझको पूजा था

उस दिल को तूने तोड़ दिया
दुनिया में अकेले छोड़ दिया

पर ये दिल तुझको भूला नहीं
तड़पा है तुझसे रूठा नहीं

आ लौट के आ मेरे बिछड़े सनम
न सता अब मुझे और सनम

चल तोड़ दें हर दुनिया की रसम
तुझको तेरी चाहत की कसम

- नमालूम

साथी तेरे नाम एक दिन जीवन कर जायेंगे

साथी तेरे नाम एक दिन जीवन कर जायेंगे
तू है मेरा ख़ुदा तू न करना दगा तुम बिन मर जायेंगे

पूजता हूँ तुझे पीपल की तरह
प्यार तेरा मेरा तन मन की तरह
धरती अम्बर में तू
इस मंज़र में तू
फूल पत्ती में तू , तू है मेरा ख़ुदा तू न करना दगा

खुशबुओं की तरह तू महकती रहे
बुलबुलों की तरह तू चहकती रहे
दिल के हर तरफ से
आ रही है ये सदा
तू खुश रहे सदा तुम बिन मर जायेंगे

- नमालूम

तुम्हें मिलके दिल को यूँ लगा

तुम्हें मिलके दिल को यूँ लगा
मेरी ज़िन्दगी मुझे मिल गयी
तू कहीं रहे मैं कहीं रहूँ
कहे दिल ये मेरा बार-बार

ख्वाब था तुम मिलो मिलके यूँ न दूर हो
प्यार में साथ जीना साथ मरना संग हो
मेरे मन के मंदिर में सदा
रहो तुम हमारे साथ-साथ
तुम्हें मिल के दिल को यूँ लगा
अरमान मेरे मिल गये

मैं तुम्हारे साथ हूँ
तुम ही हो प्यार मेरा
साज मेरा आवाज़ तुम हो
तुम को क्या मालूम मेरे हमसफ़र हो
है ख़ुदा साथ मेरे
तुम सुधा मैं प्यास हूँ

तुम्हें मिल के दिल को यूँ लगा
अरमान मेरे मिल गए

- नमालूम

25.07.99

Monday, June 9, 2014

आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ

बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ

मैं बसाना चाहता हूँ स्वर्ग धरती पर
आदमी जिसमें रहे बस आदमी बनकर
उस नगर की हर गली तैयार करता हूँ
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ

इक खिलौना बना गया दुनिया के मेले में
कोई खेले भीड़ में कोई अकेले में
मुस्कराकर भेंट हर स्वीकार करता हूँ
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ

हूँ बहुत नादान करता हूँ ये नादानी
बेचकर खुशियाँ खरीदूं आँख का पानी
हाथ खाली हैं मगर व्यापार करता हूँ
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ


- नमालूम

Sunday, June 8, 2014

मुझे प्यार की ज़िन्दगी देने वाले

मुझे प्यार की ज़िन्दगी देने वाले
कभी ग़म न देना ख़ुशी देने वाले

मुहब्बत के वादे भुला तो न दोगे
कहीं मुझसे दामन छुड़ा तो न लोगे
मेरे दिल की दुनिया है तेरे हवाले

जमाने में तुमसे नहीं कोई प्यारा
ये जां भी तुम्हारी ये दिल भी तुम्हारा
गर न हो यकीं तो कभी आजमा ले

- नमालूम

तेरी दोस्ती से मिला है मुझे इक तोहफा प्यार का

तेरी दोस्ती से मिला है मुझे इक तोहफा प्यार का
है बदनसीबी हमारी सनम न मिल सका प्यार आपका

मैं तो नहीं पर मेरा साया तेरे साथ है
बाँहों में तेरी सनम मेरी ही सौगात है
तेरे मिलन को तड़पता हूँ मैं किस घड़ी मिलूं

काँटों का जंगल अभी मिला है मुझे
यादों में तू है बसा कैसे भुलाऊं तुझे
काटे कटे न ये ज़िन्दगी तेरे बिना साजना

-नमालूम
25.07.99

दूर से मिलती बुझती रहे प्यास

अंखियों को रहने दे अखियों के आस पास
दूर से मिलती बुझती रहे प्यास
रह गयी दुनिया में नाम की खुशियाँ
तेरे मेरे किस काम की खुशियाँ
सारी उम्र हमको रहना है उदास
दूर से मिलती बुझती रहे प्यास

दर्द ज़माने के कम नहीं मिलते
सबको मुहब्बत के ग़म नहीं मिलते
टूटने वाले दिल होते हैं कुछ ख़ास
दूर से मिलती बुझती रहे प्यास

- नमालूम


दिलवर दिल भी अजीब होता है

दिलवर दिल भी अजीब होता है
दूर होकर भी करीब होता है

हमसे मिलोगी अगर होगा वो तुमपे असर
यार कड़ी धूप में कट जाएगा सफ़र
मुहब्बत ख़ुदा का सही नाम है
मुहब्बत से महरूम नाकाम है
पाना खोना तो दुनिया भर में होता है

ग़म और ख़ुशी का मजा देंगे तुम्हें प्यारा से
चाहत की हर इक सजा लेंगे हम यार से

- नमालूम

फूल राहों में बिखर जाते हैं जब वो आते हैं

फूल राहों में बिखर जाते हैं जब वो आते हैं

चूमके कदम है झूमता मौसम
माहिया ये माहिया है नाचता छमा छम
धीमे-धीमे गाये घटा धीमे - धीमे गाये हवा
इक नशे में दिन गुजर जाते हैं जब वो आते हैं

फूल राहों में बिखर जाते हैं जब वो आते हैं

दर्द की गहराईयों में डूबता जाता दिल
डूबती कश्ती को अब तो मिल गया साहिल
धीमे-धीमे आये वो धीमे-धीमे आये हम
दिल में जगी शमा प्यार की
ख्वाब कितने ही डोल जाते हैं जब वो आते हैं

फूल राहों में बिखर जाते हैं जब वो आते हैं 

- नमालूम

मेरे हमसफ़र मेरे साथ

मेरे हमसफ़र मेरे साथ
तुम सभी मौसमों में रहा करो
कभी नदी बनकर बहा करो
कभी बूँद बनके गिरा करो

मेरे पास आओ जो तुम कभी
कहीं धूप हो कहीं छाँव हो
अभी आरजू बहुत है
कभी गेसुओं में समां करो

तुम्हें फायदे हैं बहुत मगर
उनको रखना प्यार से सम्हाल के
कोई भी यदि आ जाए
मान उसका बढ़ाना तुम बहुत

- नमालूम

नियते शौक भर न जाये कहीं

नियते शौक भर न जाये कहीं
तू भी दिल से उतर न जाये कहीं

आज देखा है तुमको देर के बाद
आज का दिन गुजर न जाए कहीं

न मिला कर उदास लोगों से
हुस्न तेरा बिखर न जाये कहीं

आरजू है कि तू यहाँ आये
और फिर न जाए उम्र भर कहीं

- नमालूम

जिनमें पानी था वो बादल आग बरसाते रहे

जिनमें पानी था वो बादल आग बरसाते रहे
लोग नावाकिफ हवाओं की सियासत से रहे

कैसा मैला था कि सारा शहर जिसमें खो गया
घर, गली ,बस्ती, मोहल्ले आज तक सूने रहे

उस पराये शख्स से कैसा अजब रिश्ता रहा
आँख नम उसकी हुयी ,हम देर तक भीगे रहे

तेज आंधी के खिलाफ अपनी जगह कायम थे हम
या ये कह लो हतः धर कर हाथ पर बैठे रहे

एक सपना टूटने का दुःख रहा काफी दिनों
अब ये लगता है बहुत लोगों से हम अच्छे रहे

- नमालूम 

कितनी खामोशियां सुनाते हैं

कितनी खामोशियां सुनाते हैं
पेड़ जब बोलने पे आते हैं

वे हमें रास्ता बताते हैं
हम जिन्हें रास्ते पे लाते हैं

क्या है उस पार खुद ही देखेंगे
लोग तो कुछ का कुछ बताते हैं

- नमालूम

ग़म बहुत खुद्दार हैं उनके यहाँ जाते नहीं

ग़म बहुत खुद्दार हैं उनके यहाँ जाते नहीं
जिनके घर में उनकी कोई पूछगछ होती नहीं

मांग लेना रंग सूरज एक दिन अपने सभी
एक तितली रात भर इस खौफ से सोती नहीं

जो उजाले मांगते हैं उनको डस लेती है धूप
छाँह कन्धों पर कभी भी धूप को धोती नहीं

आँख से झरकर गिरी हैं ख्वाब वाली चाहतें
भर गया दामन पर उसमें एक भी मोती नहीं

- नमालूम

Friday, June 6, 2014

जितने लम्हे उधार लाते हैं

जितने लम्हे उधार लाते हैं
सांस ही सांस में चुकाते हैं

तेरी महफ़िल में कुछ  तो है वरना
लोग क्यों बार बार आते हैं

अपनी सूरत से खुद परेशां हैं
आप क्यों आईना दिखाते हैं

तुझको वो खोजते जन्म - जन्मों
जो पता खुद का भूल जाते हैं

बूँद हूँ मैं वजूद मेरा क्या
पर समंदर भी डूब जाते हैं

- नमालूम
24.07.99

किसको यारो माफ़ करूँ , किसको कहूँ सजा बोलूं

किसको यारो माफ़ करूँ , किसको कहूँ सजा बोलूं
सब चेहरे इक जैसे हैं , मुश्किल में हूँ क्या बोलूं

वह भी मुझको छलता है ,वह भी मुझको डसता है
जिसके लिए मैं साड़ी उम्र खुशियों भारी दुआ बोलूं

कुछ तो मजबूरी होगी , यूँ दिल भी तड़पा होगा
तुम वाडे से मुकर गए , कैसे इसे खता बोलूं

साजिश रची सियासत ने , नफरत की बारूद उड़ी
यार भी कातिल बन बैठा , कैसी इसे हवा बोलूं

- नमालूम


ज़िन्दगी की महफ़िल में, ऐसे कौन आता है

ज़िन्दगी की महफ़िल में, ऐसे कौन आता है
कोई शख्स मिलता है, जब ख़ुदा मिलाता है

यूँ तो मैं सुनाता हूँ, जो भी याद आता है
आदमी न जाने क्यूँ, सुन के भूल जाता है

तुम मेरे करीब आओ , दिल की रौशनी बनकर
चाँद का भरोसा क्या , चाँद डूब जाता है

कितना रब्त है दिल को , झनझनाते तारों से
साज को जो छूता हूँ, जिस्म गुनगुनाता है

तकते- तकते राहों को, थक गयीं मेरी आँखें
जाने कब वह आएगा, दिल जिसे बुलाता है

देख, मारने वाले, तेरे दस्त-ओ-बाजू से
उसके हाथ लम्बे हैं , जो मुझे बचाता है

मेरे दिल की दुनिया में, इक चिराग है 'संजर'
जो मुझे अंधेरों में , रास्ता दिखाता है

- 'संजर'

मुहब्बत भी क्या चीज होती है यार

आँखों में नींद न दिल में करार
मुहब्बत भी क्या चीज होती है यार
कभी बेखुदी तो कभी इंतज़ार
मुहब्बत भी क्या चीज होती है यार

दर्द उठे प्यास जगे याद सताए
कोई सदा शामो सहर पास बुलाए
रात ढले धूप खिले आये सवेरा
चाहतों के आशियाँ में दिल का बसेरा
बेकरारी है जाने क्यूँ सनम
आँख है खुली नींद में हैं हम
हर घड़ी दिल में  कैसा ये खुमार

मैं तो तुझे एक भी पल भूल न पाऊं
जाने वफ़ा पास तेरे दौड़ी आऊँ
तू जो कहे रस्में सभी तोड़ दूँ सनम
तेरे लिए दोनों जहाँ छोड़ दूँ  सनम
रात न कटे न कटे ये दिन
कैसे कटेगी उम्र तेरे बिन
प्यार ज़िन्दगी में होता है एक बार


बाँट रहा था जब ख़ुदा सारे जहाँ की नैमतें

मैं क्यों दामन को फैलाऊं
मैं क्यों कोई दुआ मांगूं
तुझे जब पा लिया मैंने
ख़ुदा से और क्या मांगूं

बाँट रहा था जब ख़ुदा सारे जहाँ की नैमतें
अपने ख़ुदा से मांग ली मैंने तेरी वफ़ा सनम
मेरी वफ़ा के साज में गूँज रही है लौ तेरी
मैं भी हूँ तेरी जाने जाँ मेरी वफ़ा भी है तेरी

तू जो मिल गया मुझे
चाहिए और क्या सनम

काश मैं अपनी ज़िन्दगी प्यार में यूँ गुजार दूँ
वक़्त पड़े तो दिल के साथ जान भी अपनी वार दूँ
शायद इसी तरह से हो प्यार का हक़ अदा सनम

लोग यहाँ तेरे मेरे प्यार को आजमाएंगे
तुझको अलग सतायेंगे मुझको अलग रुलायेंगे
अपना मगर है फैसला
होंगे न हम जुदा सनम

- नमालूम

राह-ए- हस्ती में साथ छोड़ गया

राह-ए- हस्ती में साथ छोड़ गया
ग़म से रिश्ता हमारा जोड़ गया

क्यों न दिल उसका होके रह जाए
टूटे रिश्ते को कोई जोड़ गया

उसको अहसास भी नहीं इसका
दिल का आईना भी वो तोड़ गया

फख्र था जिसकी हमराही पे  मुझे
दो कदम चलके , साथ छोड़ गया

उसका अहसानमंद हूँ 'अंदाज'
अपनी यादों से मुझको जोड़ गया

- 'अंदाज'
24.0799

प्यार भरे मौसम में

ये दिल तुझपे फ़िदा है क्योंकि तुझमें ऐसी अदा है
तुझसा हंसीं ऐ हमनशीं सारे जहाँ में कहाँ है

प्यार भरे मौसम में
आ हम तुम जी लें मर लें
दूर कहीं जाकर तुम्हें
प्यार जी भर के कर लें
बाहों में आ जा दिल में समा जा
जाने जां दिलकश शमां है

जुल्फों में लेके अपनी
तुझको मैं छिपा लूँ
होठों से लगाकर
दिल में बसा लूँ
आज जो मिले हैं तो बिछड़े कभी न
लब पे यही दुआ है

तू ही जन्नत है मेरी
तू ही आरजू है
सदियों से मुझको जानम
बस तेरी ही जुस्तुजू है
अब तुझसे मिलके लगता है ऐसा
सपना मेरा सच हुआ है

- नमालूम
25.07.99

संग संग चलूँगा मैं

संग संग चलूँगा मैं  बनके तेरा सजन
आ तेरी मांग भर दूँ, ओ मेरी सजन

कैसे कहूँ जाने वफ़ा कितना मुझे प्यार दिया
तूने मेरी किस्मत को चाहत से संवार दिया
मेरी दुनिया मेरी मंजिल नहीं लगता तेरे बिन दिल
खुशबू से तेरी महके मेरा बदन

अब है यही अरमां यूँ ही सदा तू हंसती रहे
पूरी करूँ चाहत हर चाहत तेरी तू मुझसे अब जो भी कहे
मेरा सपना मेरी साँसें तुझे देखें मेरी आँखें
तेरे लिए है पागल ये मेरा मन

कहीं दीप जले कहीं दिल

कहीं दीप जले कहीं दिल
हो देख ले आकर परवाने
तेरी कौन सी है मंजिल

मेरा गीत तेरे दिल की पुकार है
जहाँ तू है वहीँ मेरा प्यार है
मेरा दिल है तेरी महफ़िल

न मैं सपना हूँ बी कोई राज़ हूँ
इक दर्द भरी आवाज़ हूँ
पिया देर न कर आ मिल

दुश्मन हैं हजारों यहाँ जान के
जरा मिलना नज़र पहचान के
कई रूप में है क़ातिल

- 21.07.99

Thursday, June 5, 2014

आजकल याद नहीं कुछ भी रहता मुझको

आजकल याद नहीं कुछ भी रहता मुझको
एक बस तेरा ही ख्याल है मुझको

दूर अब तुझसे रहेंगे तो मर ही जायेंगे
हर घड़ी तेरे ही आने का है एतवार मुझको

आ तेरे सोने को सपने बुने मैंने
और मांगी है दुआएं कि वो मिले मुझको

ख़ुदा करे कि वो इतने करीब आ जाएँ
कि डर न तुझसे बिछड़ने का फिर रहे मुझको

- नमालूम

जिन्हें हम भूलना चाहें

जिन्हें हम भूलना चाहें  वो अक्सर याद आते हैं
बुरा हो इस मुहब्बत का वो क्यों कर याद आते हैं

भुलाएँ किस तरह उनको कभी पी थी उन आँखों से
छलक जाते हैं जब आंसू वो सागर याद आते हैं

किसी के सुर्ख लब थे या दिये की लौ मचलती थी
जहाँ की थी कभी पूजा वो मंदिर याद आते हैं

रहे ऐ शम्मा तू रोशन दुआ देता है है परवाना
जिन्हें किस्मत में जलना है वो जलकर याद आते हैं

- नमालूम

आईना सामने आया तो बुरा मान गए

बेवफा कहके पुकारा तो बुरा मान गए
आईना सामने आया तो बुरा मान गए

तीर पर तीर चलाते थे कोई बात न थी
मैंने एक तीर चलाया तो बुरा मान गए

उनकी हर रात गुजरती थी दीवानों की तरह
मैंने एक रात गुजारी तो बुरा मान गए

- नमालूम

रातों को गर न अश्क़ बहाऊं तो क्या करूं

रातों को गर न अश्क़ बहाऊं तो क्या करूं
एक पल भी उसको भूल न पाऊं तो क्या करूं

तुम ही तो होगे कि छोड़ दे जब ज़िन्दगी भी साथ
फिर भी मौत को गले न लगाऊं तो क्या करूं

सोचा तो था कि छोड़ दूँ  उसकी गली वो मुराद
लेकिन कहीं करार न पाऊं तो क्या करूं

इतना प्यार करते हो कि दिल तो हो गया तुम्हारा
राहों में न दिल को बिछाऊं तो क्या करूं

- नमालूम

सुबह वीरान है रौशनी जब नहीं

शहर में गाँव में धूप में छाँव में
खुद को रोका बहुत फिर भी सोचा बहुत
ज़िन्दगी कौन है बंदगी कौन है
 बस तुम्हारा शबाब दे रहा है जवाब
ज़िन्दगी हो तुम्हीं बंदगी हो तुम्हीं

एक शहजादी है नाम है शायरी
उसकी महफिल में है हर तरफ दिलकशी
शे'र सुनते रहे फिर भी उलझे रहे
शायरी कौन है दिलकशी कौन है
बस तुम्हारा शबाब दे रहा है जवाब
शायरी हो तुम्हीं दिलकशी हो तुम्हीं

सुबह वीरान है रौशनी जब नहीं
रात वीरान है चांदनी जब नहीं
हमको सबकी खबर दिल ने रोका मगर
रौशनी कौन है चांदनी कौन है
बस तुम्हारा शबाब दे रहा है जवाब
रौशनी हो तुम्हीं चांदनी हो तुम्हीं

- नमालूम

16.07.99

प्यार पाने में वक़्त लगता है

प्यार पाने में वक़्त लगता है
दिल चुराने में वक़्त लगता है

लाख उड़ने की तमन्ना हो मगर
पर उगाने में वक़्त लगता है

इन परिंदों को गौर से देखो
घर सजाने में वक़्त लगता है

याद के वास्ते हैं तस्वीरें
भूल जाने में वक़्त लगता है

पत्थरों को भी पूजते रहिये
बुत बनाने में वक़्त लगता है

मुस्कराते रहो सदा 'पीयूष'
रोने-गाने में वक़्त लगता है

- 'पीयूष'

सहज अभिव्यक्ति

सहज अभिव्यक्ति को ऐसी मिली अद्भुत रवानी है
नयों में यह नयी पुरानों में पुरानी है

लगी है बोलने खुलकर नहीं तुत्लाहटें बाकी
हमारी साधना सचमुच हुयी कितनी सयानी है

मिटाते जा रहे फिर भी सभी पग चिन्ह राहों से
समय आकर स्वयं खोजे कहाँ किसकी निशानी है

कि जिसने युग बदल डाले रंगे इतिहास के पन्ने
रहेगी जो अमर जग में शहीदों की जवानी है

कंटीली प्यास आखिर क्या बिगाड़ेगी हमारा कुछ
कहीं कुछ भी न हो बाकी अभी आँखों में पानी है

नहीं है यह ग़ज़ल कोई न कोई गीत या कविता
'मधुर' के दर्द का स्वर है नहीं कोई कहानी है

- 'मधुर'

दुश्मन न करे

दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है
उम्र भर का ग़म हमें इनाम दिया है

तूफां में हमको छोड़ के साहिल पे आ गए
नखुदा का हमने जिन्हें नाम दिया है
उम्र भर का ग़म हमें इनाम दिया है 

पहले तो होश छीन लिए जुल्म सितम से
दीवानगी का फिर हमें इल्जाम दिया है
उम्र भर का ग़म हमें इनाम दिया है

अपने ही गिराते हैं नशेमन पे बिजलियाँ
गैरों ने आ के फिर भी उसे थाम लिया है
उम्र भर का ग़म हमें इनाम दिया है

दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है
उम्र भर का ग़म हमें इनाम दिया है

- नमालूम

Statements- 4

34. The stream  of life is a gift of nature.

35. You can buy books but not knowledge.

36. Friendship is one mind in two bodies.

37. The other name of life is struggle.

38. Love is the gentle smile upon the lips of beauty.

39. Understanding is the shortest distance between two people.

40. Where wealth accumulates, men decay.
                                         - Gold Smith

41. Child is the father of man.
             - Willium Wordsworth

42. I have nothing to offer except blood, sweat and tears.
                         - Winston Churchill

43. Love makes......................
             life more beautiful.

44. I was ever fighter
       So one fight more
      The best and the last
               - Browning   

11.06.99

Statements-3

23. Great are really those who transcend time and geographical limit.

24. Conosislevey in politics is a quality of foots .

25. He was great poet sure a lover too.

26. i know you, better
             than yourself.............
                    you know me, better
                         than myself................

27.  Coming together is a beginning
       Growing together is progress
       Staying together is success

28. Hours fly
       Flowers die
       New days
       New ways
       Pass by
       Love stays

29. Wealth is lost nothing is lost,
      Health is lost something is lost
       if character is lost everything is lost.

30.  Science is extensive property of nature.

31. 'The woods are lovely, dark and deep.
        But i have promises to keep
      And miles to go before i sleep
       And miles to go before i sleep.'
            - Nehru had these famous lines of the poor Robert Frost on his table till the last hours of his life.

32.  Education is that something which gives to the body, mind and soul all potentialities to which it is capable.

33. Success is to flow like water through rocks.

Statements-2

12.  Personality is infinitely more than your books and your popularity, it is you body and mind and emotions- living at your peak.
   - Karin Roon

13. Homo Sapiens, the only creature endowed with reason is also the only creature to pin its existence on things unreasonable.
  - Henry Bergon

14. Probably he who never made a mistake never made a discovery.
   - Samuel Smiles

15. Good, to forgive
      Best,  to forget.

16.  Make me, by making yourself
       Adorn me , by adorning yourself
     your ardent face inspire me to do something

17.  Lives of great men all remind us
        we can make our lives sublime
     And, departing, leave behind us
      Footprints, on the sends of time.
       - H.W. Longfellow

18. The life was like a star,
       that rose to guide the millions.
     thou set when night was morn
     And earth became the heaven
                - Shakespeare

19. Civilization, in the real sense of the term, consists not in the multiplication but in the celebrate and voluntary restriction of wants. this alone promotes real happiness and contentment and increases the capacity for service.
      - Gandhi Ji

20. .................. Man and woman are one, their problem must be one in essence. The soul in both is same the two live the same life, have the same feelings, each is a  complement of the other. The one can not live without the others active help.
      - Gandhi Ji


21. Innocent youth is a priceless porsersian not to be squandered away for the sake of a momentary excitement miscalled pleasure.
- Gandhi Ji

22. Generations to come, if may be, will scare late are that such a one as this ever, the flesh and blood, walked on the earth.

Wednesday, June 4, 2014

Statements-1

1. You can not stop the birds of trouble from flying over head, but you can prevent then from making nests in your hair.
- Chinese Proverb

2. Topics to help you build your personality logical consequences are the scare crows of fools and the beacons of wire man.
- T. H. Huxley

3. Nothing is difficult to a man who has persistence.
   - Chinese Proverb

4. His life was gentle, and the elements so mixed in him that nature might stand up. and say to all the , 'This was a man.
- Shakespeare- Julius Caesar

5. The dialoge of a man with others is life.
- Martin Gray

6. It is an absolute perfection, and it was divine to get the very most out of one's own individuality.
- Montaigne

7. How happy is he born and taught that serveth  not another 's will whose Armour is his honest thought, and simple truth is his utmost skill.
- Henry Wotton

8. A man can still go a long way when he is tired. Don't give up.
     - Herbert Casson

9. Life is not any thing, it is only the opportunity to do something.
     - Hebbel

10. Tact consists in knowing how far we may go too far.
        - Jean Cocteau

11. What a man thinks of himself, that is which determines, or rather indicates, his fate.
        - H. D. Thoreau

11.06.99 

Tuesday, June 3, 2014

चुपके-चुपके रात दिन

चुपके-चुपके रात दिन  आंसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

बाहज़ारां इज़्तराब वसद हजारां इश्त्याक
तुझ से वो पहले पहल दिल का लगाना याद है

तुझ से कुछ  मिलते ही वो बेबाक हो जाना मेरा
और तेरा दांतों में वो अंगुली दबाना याद है

खींच लेना वो मेरा परदे का कोना दफातन
और दुपट्टे से तेरा वो मुंह छिपाना याद है

तुझ को जब तन्हा कहीं पाना तो अज़राह लिहाज
हाले दिल बातों ही बातों में जताना याद है

गैर की नज़रों से बचकर सब की मर्जी के खिलाफ
वो तेरा चोरी छिपे रातों को आना याद है

दोपहर को धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है

चोरी-चोरी हमसे तुम आकर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुजरीं पर अब तलक वो ठिकाना याद है

- नमालूम
10.06.99

पत्ता -पत्ता बूटा-बूटा

पत्ता -पत्ता बूटा-बूटा  हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है

पत्ता -पत्ता बूटा-बूटा  हाल हमारा जाने है
चाराज़बी बीमारिए दिल की रस्मे शेरे हुस्न नहीं

वर्ना दिलबर नादां भी इस दर्द का चारा जाने है
पत्ता -पत्ता बूटा-बूटा  हाल हमारा जाने है

महरो वाफाओ लुत्फो इनायत एक से वाकिफ इनमें नहीं
और तो सब कुछ तंज किनारा रंजो इशारा जाने है

- मेरे तकमीर

भारतीय टीम का 17 वर्ष बाद पाकिस्तान जाने पर जोरदार स्वागत - 1978

सत्रह वर्षों बाद क्रिकेट की टीम यहाँ भारत से आई
भूली- बिसरी यादों ने ली दोनों ओर ही अंगड़ाई
कुछ प्रेम की चोटें मारेंगे , कुछ प्यार की गेंदें फेकेंगे
कुछ पास के जलवे लूटेंगे , कुछ दूर से आँखें सेकेंगे

यह प्रीत का चौका मारेगा , वह भी छक्का मारेगा
जो हारेगा वह जीतेगा , जो जीतेगा वह हारेगा
यह तेजी से दिल फेकेंगा , वह कड़ी चोट लगाएगा
मचलेगा, दिल धड़केगा, और कैच वही हो जायेगा

पीछे रक्षक जो होगा, वह बेखूबी से दिल पकड़ेगा
मुट्ठी में जब दिल आएगा , वह सीधा होकर अकड़ेगा
दिल को जो घुमाकर छोड़ेगा या जो उसे नचाएगा
वह अच्छे खासे दिलवर को , चक्कर में खूब फँसाएगा

खेल ही सारा प्रेम का है , खेल ही सारा प्यार का है
खेल मियां कोई खेल नहीं , खेल बड़े किरदार का है
मेहमान हो तुम सर आँखों पर तुमसे बड़ी उम्मीद हमें
वैसे भी महीना ईद का है, आना भी तुम्हारा ईद हमें

मैदान में आओ मिलजुलकर , मैदान का लावाजार करें
इस खेल में फूंकें जान नयी , ऊंचा इसका मेयार करें
हम सारे प्रेम पुजारी हैं , उल्फत के शैदाई हैं
मैदान-दिलों का संगम है , हम-तुम सब भाई-भाई हैं

जो हार तुम्हें पहनाएं हम, सीनों पर सजाना
है सज्जनो
मैदान में हारो या जीतो, दिल जीत के जाना
है सज्जनो !!

- डॉ . सैयद इनाम हसन 'शरीफ'

उजड़ी उजड़ी सी आस लगती है

' उजड़ी उजड़ी सी आस लगती है
जिंदगानी उदास लगती है
अए हवाओं ये उन से कह  दो जरा
सर्द रातों में प्यास लगती है'

- नमालूम

सपनों की रानी

गोरी गोरी नाजुक बाहें
फूलों की लचकीली शाखें
खिलता चेहरा हंसती आँखें
महफ़िल महफ़िल तेरी बातें

एक क़यामत तेरी जवानी
अए मेरे सपनों की रानी

होंठ गुलाबी तीखे चितवन
जिस्म है महका महका चन्दन
चढ़ती नदिया तोरा जोवन
दिल तुझको करता हूँ अर्पन

प्यार की देवी रूप की रानी
अए मेरे सपनों की रानी

बात करे तो गुल बरसाए
हर दिल पर बिजली लहराए
आँखों से  मदिरा छलकाए
जो भी देखे होश गंवाए

तन शीशा मखमूर जवानी
अए मेरे सपनों की रानी

प्यारा प्यारा रूप सलोना
कंचन कंचन जिस्म कुंआरा
जोश जवानी उभरा सीना
लहराती बलखाती कमरिया

तीर से जैसे कसती कमानी
अए मेरे सपनों की रानी

रात ने अपना रंग बिखेरा
हर जानिब है घोर अँधेरा
रूप कुमारी रूप ये तेरा
लूट न जाए कोई लुटेरा

तू भोली मासूम अनजानी
अए मेरे सपनों की रानी

- नमालूम
13.05.99

गुजरा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा

गुजरा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा , हाफ़िज़ ख़ुदा तुम्हारा
रहते थे तुम हमेशा आँखों में प्यार बनकर

मेरी नज़र में झूमे खुशियाँ हजार बनकर
अब भूल जाओ वो वक़्त इक साथ जो गुजारा , हाफ़िज़ ख़ुदा तुम्हारा

तुमको कसम है मेरी मुझको न याद करना
गुजरे दिनों की खातिर आहें न सर्द भरना
अपना मिलन था जैसे रोशन सुबह सितारा , हाफ़िज़ ख़ुदा तुम्हारा

मिलते जो हम ख़ुशी से जलता था ये ज़माना
रोएगी अब मुहब्बत बदला है ये ज़माना
लूटा चमन इसी ने जो तह पासबाँ हमारा , हाफ़िज़ ख़ुदा तुम्हारा

तुमने मुझे मिटाया ताबीर ख्वाब बनकर
मेरी विसात अब क्या नफ्से हबाब बनकर
न काम है ये कोशिश हँसना ये अब तुम्हारा , हाफ़िज़ ख़ुदा तुम्हारा

मैंने राजे दिल सुनाया तुम्हें राजदां समझकर
तूफां से दिल लगाया तुम्हें नखुदा समझकर
डूबी मेरी को कश्ती , नहीं दूर था किनारा , हाफ़िज़ ख़ुदा तुम्हारा

उल्फत से जिसको हरदम न आशना ही पाया
फिर भी 'जलील' तुम ने अपना उसे बनाया
रुसवा क्या तुम्हीं ने देकर फरेब प्यारा, हाफ़िज़ ख़ुदा तुम्हारा


याद उनको कर लिया जिस वक़्त तन्हाई हुई

याद उनको कर लिया जिस वक़्त तन्हाई हुई
ये मेरी तकदीर इस पर भी जो रुसवाई हुई

खौफ क्या जाता रहा , एहसास भी जाता रहा
हम हुए बेबाक उतने जितनी रुसवाई हुयी

याद है हमको किसी का इस तरह जाना 'शमीम'
आँख में आंसू भरे , आवाज़ भर्रायी हुई

- 'शमीम'


जिसको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा

जिसको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा
जिनको एक उम्र कलेजे से लगाये रखा

दीन जिनको, जिन्हें ईमान बनाये रखा
तूने दुनिया की निगाहों से जो बचकर लिखे

साल दर साल मेरे नाम बराबर लिखे
कभी दिन में कभी रात में उठकर लिखे

तेरी खुशबू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे

तेरे हाथों से लिखे ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

- नमालूम

कौन मिलता है किसी से बेगरज

कौन मिलता है किसी से बेगरज
हम ने तो सारी खुदाई देख ली

तुमको आना ही पड़ा वक्ते अखीर
मेरी आहों की रसाई देख ली

सादगी चश्म 'मुखलिस' देखिये
सामने जो सूरत आई देख ली

- नमालूम

मैं भूल जाऊं तुम्हें

मैं भूल जाऊं तुम्हें
अब यह मुनासिब नहीं
मगर भूलना भी चाहूँ
तो किस कदर भूलूँ

कि तुम तो फिर भी हक़ीकत हो
कोई ख्वाब नहीं
यहाँ तो दिल का ये आलम है
क्या कहूँ- कमबख्त

भूल न पाया ये वो सिलसिला
जो था ही नहीं
वो इक ख्याल
जो आवाज़ तक गया ही नहीं

- नमालूम

न मुहब्बत न दोस्ती के लिए

न मुहब्बत न दोस्ती के लिए
वक़्त रुकता नहीं किसी के लिए
कल जवानी का हश्र क्या होगा
सोच ले आज डॉ घड़ी के लिए

हर कोई ढूंढता है यहाँ
अपनी तन्हा सी ज़िन्दगी के लिए
वक़्त रुकता नहीं किसी के लिए

वक़्त के साथ चलता रहे
यही बेहतर है आदमी के लिए
वक़्त रुकता नहीं किसी के लिए

- नमालूम

शाम होने को है

शाम होने को है
लाल सूरज समंदर में खोने को है
और उसके पते
कुछ परिंदे
कतार बनाये
उन्हीं जंगलों को चले
जिनके पेड़ों की शाखों पे हैं घोंसले
ये परिंदे
वहीँ लौटकर जायेंगे
और सो जायेंगे
हम ही हैरां हैं
इन मकानों के जंगल में
अपना कहीं भी ठिकाना नहीं
शाम होने को है
हम कहाँ जायेंगे ..

- नमालूम
12.05.99

देखा है एक सपना

देखा है एक सपना
सपने में तू सजना
है छोटा सा घर अपना
चांदनी आँगन में
प्यार की बातों में
खो गया दिल अपना
कुछ जागा कुछ खोया था मैं
प्यार के आँगन में
भूल गया मैं सारी दुनिया
तेरी बाहों में
दिल ये कहता है मुझको
जीना क्या प्यार बिना

काश हो ऐसा चाँद न डूबे
रात को रोक लूं,  मैं
झूम उठी ये दुनिया मेरी
तेरी बाहों में
दिल ये कहता है मुझको
जीना क्या प्यार बिना
देखा है एक सपना

- 'अमरजीत'

क्यों बहा जाता हूँ मैं

क्यों बहा जाता हूँ मैं 
भावनाओं के गुबार में
क्यों रखता हूँ
एक सुखद आशा
कुछ पाने की
जबकि
जानता हूँ मैं
कोई नहीं, समझ सकता
मेरी संवेदनाएं
इस मतलबी संसार में
जहाँ,
अपने स्वार्थ के लिए
किसी की भावनाओं से खेलना
एक मामूली बात है
वहां नि:स्वार्थ , कोई
क्या, देगा मुझे
तरसता हूँ सुनने को
डॉ शब्द आत्मीयता के
सोचता हूँ
बनूँ मैं भी स्वार्थी
खेलूं दूसरों की भावनाओं से, परन्तु
यह सम्भव नहीं , क्योंकि
कुछ लोग जन्म लेते हैं
सिर्फ सहने के लिए !!

- नमालूम

एक अनसुलझा रिश्ता

एक अनसुलझा रिश्ता , अनजाना सम्बन्ध
एक अनसुलझी पहेली से उलझता जा रहा हूँ मैं
मैं इस रिश्ते को नाम नहीं देना चाहता
परन्तु संसार ने इसको नाम दे दिया है प्रेम का
मैं इसे झुठलाता हूँ
बहुत अंतर्द्वंद होता है मन में
परन्तु अब थक चुका हूँ
लड़ते-लड़ते अपने मन से
मजबूर हो गया हूँ
इस तथ्य को स्वीकार करने के लिए
हाँ! शायद मुझे प्यार हो गया है
कोई अब बतलाये
किसके सहारे ही खड़ा रहूँ
एक दिए की तरह तूफ़ान में
हाँ ! मुझे जरूरत है
एक सहानुभूति की
एक स्नेह-सिक्त दृष्टि की
ताकि मैं पा सकूँ
किनारा , प्रेम रुपी मझधार में
शायद,
तुम्हरे प्रेम का भंवर ही
मेरा किनारा है ..

- 'अमरजीत'

होठों से छू लो तुम

होठों से छू लो तुम
मेरा गीत  अमर कर दो
बन जाओ मीत मेरे
मेरी प्रीत अमर कर दो

न उम्र की सीमा हो
न जन्म का हो बंधन
जब प्यार करे कोई
तो देखे केवल मन
नयी रीत चला कर तुम
ये रीत अमर कर दो

आकाश का सूनापन
मेरे तन्हा मन में
पायल छनकाती तुम
आ जाओ जीवन में
साँसें देकर अपनी
संगीत अमर कर दो
संगीत अमर कर दो
मेरा गीत अमर कर दो

- नमालूम
12.05.99

पत्थर के सनम

पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम
पत्थर के ही इंसान पाए हैं

तुम शहरे मुहब्बत कहते हो
हम जान बचा के आये हैं


बुतखाना समझते हो जिसको
पूछो न वहां क्या हालत है
हम लोग वहीँ से लौटे हैं
बस शुक्र करो लौट आये हैं

तुम शहरे मुहब्बत कहते हो
हम जान बचा के आये हैं

हम सोच रहे हैं मुद्दत से
अब उम्र गुजारें तो कहाँ
सहरा में ख़ुशी के फूल नहीं
शहरों पे ग़मों के साए हैं

होठों पे तबस्सुम हल्का सा
आँखों में नमी सी है कातिल
हम एहले मुहब्बत पर मंज़र
ऐसे ही समाने आये हैं

तुम शहरे मुहब्बत कहते हो
हम जान बचा के आये हैं
पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम 

आते जाते हँसते गाते

आते जाते हँसते गाते
सोचा था मैंने मन में कई बार
वो पहली नज़र
हल्का सा असर
करता है क्यूँ इस दिल को बेक़रार
रुक के चलना चल के रुकना
न जाने तुम्हें है किसका इंतज़ार
तेरा वो यकीं कहीं मैं तो नहीं
लगता है मुझको यही बार-बार
यही सच है शायद मैंने प्यार किया
हाँ-हाँ तुमको मैंने प्यार किया
आते-जाते हँसते गाते
सोचा था मैंने मन में कई बार
होठों की कली
कुछ और खुली
दिल पे हुआ है उसका इख़्तियार
तुम कौन हो बतला दो
क्यों करने लगी मैं तुमपे ऐतवार
खामोश रहूँ या मैं कह दूँ
या करलूं मैं चुपके से स्वीकार
यही सच है शायद मैंने प्यार किया
हाँ-हाँ तुमसे मैंने प्यार किया

- 'अमरजीत'
12.05.99

' भाई द्वारा बहन के लिए

जीवों से प्यार है मुझे
इन सारे रिश्तों की
जिनकी मुझे जरूरत महसूस
होती रही है
एक लम्बी लिस्ट है मेरे पास
लेकिन उसमें सबसे ऊपर है
मेरी बड़ी बहन
जिसके प्यार के बारे में
मैं सोचता हूँ
क्या करती, वह अगर होती
मारती, डांटती या प्यार करती
मारती तो नहीं
मुझे यकीन है
हाँ, डांटती जरूर मगर प्यार से
वह ऐसा करती वह वैसा करती
मैं बहुत प्यार से सोचता हूँ
लेकिन क्या मैं तब भी
सोचता एक पल भी
इतने प्यार से
जबकि वह होती .....

- 'कशिश'

करोगे याद तो

करोगे याद तो हर बात याद आएगी
गुजरते वक़्त की हर मौज ठहर जाएगी

ये ख्वाब जो तुम सजा रही हो
इनमें तुम्हें मेरी ही तस्वीर नज़र आएगी

बरसता भीगता मौसम धुआं- धुआं होगा
पिघलती शम्मों पे दिल का मेरे गुमां होगा

- नमालूम

मेरी पसंद

सीधा बहाव है कभी उल्टा बहाव है
ऐसी उथल पुथल से मुसीबत में नाव है

गंगा लहू-लहू है तो जाहिर सी बात है
दिल में कहीं जाकर हिमालय के घाव है

कोई भी रूप रंग हो , कोई भी हो महक
मुझको हर एक फूल से बेहद लगाव है

सोने का भाव क्या करें, हम पूछ कर 'नदीम'
मिट्टी को देखते हैं कि सोने के भाव है

- ओम प्रकाश 'नदीम'

12.05.99

Sunday, June 1, 2014

नारी सभा में चल दिए

एक दिन एक सफ़ेद पोश नारी सभा में आया
नारियों के शोषण से सम्बंधित खूब लेक्चर फरमाया

बोले वो कि नारी तो सारे संसार की जननी है
और उसी संसार के जुल्मों से उसका कलेजा छलनी है

अब समाज कल्याण के तहत हमको ये कराना है
अब औरत को समता का अधिकार दिलाना है

ख़त्म कर अपना लेक्चर वो अपने घर को आये
आकर घर इंतज़ार किया कि जल्दी दिन ढल जाये

शाम ढलते ही रात हुयी कुछ उनके नुमाइंदे आये
रात रंगीन करने के लिए वो नायाब तोहफा लाये

तोहफे में भी एक लाचार और  बेबस नारी
जो सुबह इन्हीं की नारी सभा में बैठी थी बेचारी

वो बोले उससे हमें खुश कर दो रानी
अरे रातों रात बना दूंगा मैं तुम्हें महारानी

हाथ जोड़े पाँव छुए उसने , पर कोई हथकंडे न चल पाए
लूटकर उसका सतीत्व वो मन ही मन मुस्काए

रात ढली वो  काली फिर एक नयी सुबह आई
नींद से जागे जब वो तो फोन की घंटी घनघनाई

खबर थी कि आज उनको एक समाज कल्याण कराना है
किसी नारी सभा में फिर अपना लेक्चर सुनाना है

रात की घटना सोचकर वो में में बड़ा खुश हुए
नहा - धो और नाश्ता कर फिर नारी सभा में चल दिए

- नमालूम
 

नव वर्ष की शुभकामनाएं

भृकुटियों में पाला नहीं
जा सकता
ह्रदय में संभाला नहीं
जा सकता
यह नवीनता लेकर
आएगा
फिर बीता कल हो
जायेगा
हर बार बसंत
आता है
साश्वत तो नहीं ठहर
पाता है
नव वर्ष तो ऐसे
ही आता है
जीवन्तता के इन्द्रधनुषी
रंगों को भर लाना है
दुःख एक छिपा होगा
एक वर्ष और कम होगा
खुशियाँ भी तो कम
न होंगीं
सबको भविष्य की
कल्पना होगी
नए-नए आयाम
दिखेंगे
सपने सब साकार
लगेंगे
नव वर्ष में सबको
मिले सुख समृद्धि
लक्ष्य हो निश्चित
प्रयासों में हो वृद्धि
उन्नति करे अपना
देश
शुभकामनाएं सहित
'कशिश' का सन्देश

- कशिश

याद

एक बात पूछूं
तुम्हें कभी याद आते हैं
वे पल, वे बीते पल
जिनमें कभी हमने समय के सीने पर
कहानियां लिखी थीं एक दूसरे के चाहत की

********************************

जब कभी कोयल कूकती है
अगराईयों में
क्या तुम भी याद करती हो
उन लम्हों को
उन गुजरे लम्हों को
जब तुम्हारा चेहरा
मेरी हथेलियों में होता था
और
तुम भटकती जाती थी
दूर कहीं दूर

*************************

मुझे अपने करीब पाकर
नज़रों का झुक जाना
सासों का बहक जाना
और
अपने थरथराते होठों की
तुम्हें कुछ याद आती है ?

****************************

क्या कभी चुभती है
तुम्हारे सीने में
उन टूटे सपनों की किरण
जिन्हें कभी सजाया था हमने
एक दूसरे की खुली हथेलियों पर
अपने होठों की तुलिका से खामोश
ठहरे हुए पलों में ?

- नमालूम

जान के भी अनजाना कैसा मेरा यार है

पहला पहला प्यार है पहली पहली बार है
जान के भी अनजाना कैसा मेरा यार है
पहला पहला प्यार है पहली पहली बार है
उसकी नज़र पलकों के चिलमन से मुझे देखती
उसकी नज़र
उसकी हया अपनी ही चाहत का राज़ है

छिप के करे जो वफ़ा ऐसा मेरा यार है
पहला पहला प्यार है पहली पहली बार है
वो है निशा , वो ही मेरी ज़िन्दगी की भोर है
वो है निशा
उसे है पता उसके ही हाथों में मेरी डोर है
उसे है पता

सारे जहाँ से जुदा ऐसा मेरा यार है
पहला पहला प्यार है पहली पहली बार है
जान के भी अनजाना कैसा मेरा यार है

- नमालूम


तन्हाई मेरी बस मेरे साथ थी

हाय पल-पल मेरी जान जाती रही
कितना दिल को मेरे तड़पाती रही
 सारी रात तेरी याद मुझे आती रही

कल बरसात थी जाने क्या बात थी
तन्हाई मेरी बस मेरे साथ थी
हाय आँखों से आंसू छलकाती रही

ये जो दीवारों पर हैं धुंधले निशाँ
मेरी  बेचैनियाँ हैं मेरी जाने जाँ
हाय लिख-लिख के तेरा नाम मिटाती रही

ये जो मौसम दीवाना सताने लगे 
तेरी याद दीवाना दिलाने लगा
हाय ठंडी हवा दिल को लुभाती रहे

मेरी खूने ज़िन्दगी को वो समझ रहे थे पानी

मेरी खूने ज़िन्दगी को वो समझ रहे थे पानी
उन्हें होश तक न आया मेरी मिट गयी जवानी

मैंने पहले ही कहा था , दिल का लगाना कैसा
मेरे दिल के आईने में तस्वीर है तुम्हारी

ये शहर के मेरे बादल रौशनी ही बन चले थे
मुस्करा भी हम न पाए, कि आंसू छलक ही आये

- नमालूम
11.05.99

तुम जो मिलते तो कभी घर तो पहुँच ही जाते

घर की खामोश हवाओं ने बग़ावत की है
अपने ख्यालों से ही लोगों ने अदावत की है

नींद आई भी नहीं, स्वप्न आ गए पहले
किसने सपनों के लिए मेरी वकालत की है

तुम जो मिलते तो कभी घर तो पहुँच ही जाते
हमने रूठे हुए सपनों से मुहब्बत की है

रंग इस फूल का इतना चटक हुआ कैसे
आज माली ने बहारों से शिकायत की है

कोई उन्वान तो इस ज़िन्दगी का रख देते
गोकि हर एक ने इस दिल से शरारत की है

और हम सह न सके जुल्म रहनुमाओं के
हमने चुपचाप सियासत की खिलाफत की है

- राकेश 'भ्रमर'

सोच रहा हूँ

शायर हूँ कोई ताजा ग़ज़ल सोच रहा हूँ
फुटपाथ पे बैठा हूँ महल सोच रहा हूँ

गुजरे जो तेरे साथ वो पल सोच रहा हूँ
ये वक़्त भी जायेगा निकल सोच रहा हूँ

क्या होगा मेरे देश का कल सोच रहा हूँ
उलझा है जिस सवाल का हल सोच रहा हूँ

मस्जिद में पुजारी हो तो मंदिर में शेख जी
हो किस तरह ये रद्दो बदल सोच रहा हूँ

कहते हैं सभी लोग कि लायेंगे इन्कलाब
लेकिन करेगा कौन पहल सोच रहा हूँ

ये वक़्त तो मुश्किल से मेरे हाथ लगा है
ये हाथ  से जाए न फिसल सोच रहा हूँ

उस फूल के बदन को कहूँ क्या मैं 'कंबरी'
जूही, गुलाब, बेला, कमल सोच रहा हूँ

- कम्बरी

झूठ की ताक़त जो बढती जाएगी इस दौर में

ये सदी रुसवाईयों के नाम कर दी जायेगी
ज़िन्दगी तन्हाईयों के नाम कर दी जाएगी

झूठ की ताक़त जो बढती जाएगी इस दौर में
मुफलिसी सच्चाईयों के नाम कर दी जाएगी

कोई रोता और चिल्लाता यूँ ही फिरता रहे
हर ख़ुशी हरजाईयों  के नाम कर दी जाएगी

हद से बढती जाएगी जो आपकी ये बेरुखी
बेबसी परछाईयों के नाम कर दी जाएगी

हम ग़रीबों के दिलों में झाँकने के बाद ही
बंदगी ऊंचाईयों के नाम कर दी जाएगी

जब भी छू के गुजरे शे'र तो यह जानिए
शायरी गहराईयों के नाम कर दी जाएगी

साथ गर 'आज़ाद' का अब भी न दोगे दोस्तो
सरजमीं सैदाईयों के नाम कर दी जाएगी

- आज़ाद कानपुरी


Saturday, May 31, 2014

कितने रूप अभी धरने हैं

कितने रूप अभी धरने हैं
कितने नाम अभी खोने हैं
पूछ रहा हूँ मैं दर्पन से
क्या-क्या परिवर्तन होने हैं

दर्पन जिसमें  दुनिया देखी
स्वप्न सजाये साथ तुम्हारे
कभी नील झीलों में तैरे
कभी गगन में पंख पसारे

और गगन में उड़ते -उड़ते
अनायास बंट गयीं दिशाएं
संभव है फिर कहीं मिलें हम
अब केवल परिचय ढ़ोने हैं

दर्पन जिसमें हमने अपने
कैसे-कैसे रूप निहारे
कभी किसी की ऊँगली थामी
कभी किसी के केश संवारे

किन्तु अचानक जाने किससे
भूल हो गयी दर्पन चटका
चिट्खे दर्पन में परछाईं
के दो टुकड़े ही होने हैं

दर्पन जिसमें भीगी आँखें
लेते विदा दिखे दो तारे
दोनों गुमसुम सोच रहे थे
हम क्या जीते - हम क्या हारे

एक अनुत्तर प्रश्न स्वयं से
आखिर ऐसा क्यों होता है
अब तक जान नहीं पाया हूँ
ये किसके जादू टोने हैं

- राजेन्द्र तिवारी
10.05.99

सपनों का मानचित्र

सपनों के मानचित्र
अपनों ने फाड़ दिए
यादों के ढेर पर रह गयी
काग़ज़ के टुकड़े  सी ज़िन्दगी

बंधन के मरू-थल में
चंचल हरियाली सी
सुधियों के सावन में
बनती मेघाली सी

हल्की सी भारी सी
झोंके हर मौसम के
आंसू के आखर में सह गयी
काग़ज़ के टुकड़े  सी ज़िन्दगी

मन के अंधियारे में
आशाएं फूटी हैं
बुनियादें जीवित हैं
दीवारें टूटी हैं

चन्दन की घाटी में
विषधर भी होते हैं
चुपके से सच्चाई कह गयी
काग़ज़ के टुकड़े  सी ज़िन्दगी

पीछे से दूषित है
आगे से दर्पण है
हँसना क्या रोना क्या
सुख-दुःख ही जीवन है

फूलों की गलियों में
कांटे भी होते हैं
शावों की धार में बह गयी
काग़ज़ के टुकड़े  सी ज़िन्दगी

- हरिलाल
10.05.99

बादलों के दल नहीं थे

पेड़ में बस पत्तियां थीं फल नहीं थे
इसलिए तोते यहाँ पर कल नहीं थे

हम अकेले ही चले थे नाव लेकर
हंसने वाले थे बहुत संबल नहीं थे

खेत सूखे थे मगर जोते हुए थे
पर उमड़ते बादलों के दल नहीं थे

आ गए फिर लौटकर जब स्वागतम है
तुम नहीं थे, आज वाले पल नहीं थे

कल कुहासा था, अँधेरा था, दिए थे
पूर्णिमा के पल्लवी शतदल नहीं थे

आज उनके द्वारा तोरण से सजे हैं
जिनके तन पर कल यहाँ वल्कल नहीं थे

- नमालूम

रात है

आज सकुचाने की नहीं
शर्माने की नहीं
लजाने की नहीं
आज तो
हंसने हंसाने की रात है

चाँद को  मुक्त कर दो
घूंघट से
आज तो
चांदनी में नहीं की रात है

रीता रूप
कंचन काया
केश यौवन
और कितना तरसाओगी
आज तो
रस बरसाने की रात है

दिल को धड़कने दो
जोरों से
भावनाओं को मचलने दो
अधरों को भी मत टोको
आज तो बांहों में
अमृत पिलाने की रात  है

- नमालूम

सत्रहवां सावन

तेरे जीवन का सत्रहवां सावन
कितना सुन्दर कितना पावन

तेरे रूप में आया निखार
जब आई इस सावन की फुहार

तेरी सूरत कितनी भोली
लगती जैसे नशे की गोली

जब बजते तेरे पायल
कर देते मेरे दिल को घायल

किस से पाई है तुमने ये दौलत
सब है इस सावन की बदौलत

यह सावन हमेशा बना रहे
तेरा रूप हमेशा खिला रहे

- नमालूम
10.05.99

कैसे बताऊँ मैं तुम्हें

कैसे बताऊँ मैं तुम्हें
मेरे लिए तुम कौन हो
मेरे लिए तू धर्म है
मेरे लिए ईमान है
तुम्हीं इबादत हो मेरी
तुम्हीं तो चाहत हो मेरी
तुम्हीं मेरा अरमान हो

तकता हूँ मैं हर पल जिसे
तुम्हीं तो वो तस्वीर हो
तुम्हीं मेरी तकदीर हो
तुम्हीं सितारा हो मेरा
तुम्हीं नजारा हो मेरा
यों ध्यान में मेरे हो तुम
जैसे मुझे घेरे हो तुम

पूरब में तुम
पश्चिम में तुम
उत्तर में तुम
दक्षिण में तुम
सारे मेरे जीवन में तुम
हर पल में तुम
हर जिन में तुम

मेरे लिए रस्ता भी तुम
मेरे लिए मंजिल भी तुम
मेरे लिए सागर भी तुम
मेरे लिए साहिल भी तुम
मैं देखता बस तुमको हूँ
मैं सोचता बस तुमको हूँ
मैं जानता बस तुमको हूँ
मैं मानता बस तुमको हूँ

तुम्हीं मेरी पहचान हो
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें
देवी हो तुम मेरे लिए
मेरे लिए भगवान हो
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें
मेरे लिए तुम कौन हो
कैसे बताऊँ !!

- नमालूम

ज़िन्दगी की धूप

ये जो तुम्हारा रूप है
ये ज़िन्दगी की धूप है
चन्दन से तरसा है बदन
बहती है जिसमें एक अगन
ये सोखियाँ ये मस्तियाँ


तुमको हवाओं से मिलीं
जुल्फें घटाओं से मिलीं
होठों पे कलियाँ खिल गयीं
आँखों को झीलें मिल गयीं
चेहरे में सिमटी चांदनी
आवाज़ में है रागनी


शीशे से जैसा रूप है
फूलों के जैसा रंग है
नदियों के जैसी चाल है
क्या हुस्न है क्या हाल है


ये जिस्म की रंगीनियाँ
जैसे हजारों तितलियाँ
बांहों की ये गोलाईयां
आँचल की ये परछाईयाँ
ये नगरियाँ हैं ख्वाब की


कैसे बताऊँ मैं तुम्हें
हालत दिले बेताब की
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें
मेरे लिए तुम कौन हो
कैसे बताऊँ !!


- नमालूम

कैसे बताऊँ मैं तुम्हें

कैसे बताऊँ मैं तुम्हें
मेरे लिए तुम कौन हो
कैसे बताऊँ
तुम धड़कनों का गीत हो
जीवन का तुम संगीत हो
तुम ज़िन्दगी
तुम बंदगी
तुम रौशनी
तुम ताजगी
तुम हर ख़ुशी
तुम प्यार हो
तुम प्रीत हो
तुम मनमीत हो

आँखों में तुम
यादों में तुम
साँसों में तुम
आँहों में तुम
नींदों में तुम
ख्वाबों में तुम

तुम हो मेरी हर बात में
तुम हो मेरे दिन रात में

तुम सुबह में
तुम शाम में
तुम सोच में
तुम काम में

मेरे लिए पाना भी तुम
मेरे लिए खोना भी तुम
मेरे लिए हँसना भी तुम
मेरे लिए रोना भी तुम

जाऊं कहीं देखूं कहीं
तुम्हीं हो वहां
तुम्हीं हो वहां
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें
तुम गीत तो नहीं
संगीत तो नहीं
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें
मेरे लिए तुम कौन हो

- नमालूम

मेरा ख़त पढ़ के

मेरा ख़त पढ़ के हैरत है सबको
प्यार में हमने क्या लिख दिया है
जिसको लिखना था जालिम सितमगर
उसको जाने वफ़ा लिख दिया है

इतना उकता गया है वो खुद से
ज़हर को भी दवा लिख दिया है
ऐसी क्या गुजरी है उसपे
जिसने ज़िन्दगी को सजा लिख दिया है

मेरे महबूब की दिल्लगी भी कोई देखे
तो कितनी हंसी है
ग़ैर का ख़त लिफ़ाफे में रखकर
उसपे मेरा पता लिख दिया है

प्यार झूठा मुहब्बत भी झूठी
अब किसी पे भरोसा न करना
शहर की आज दीवार पर ये
एक पागल ने क्या लिख दिया है

क्या बताऊँतुम्हें आज अशहर
मेरा महबूब कितना खफा है
नाम काग़ज़ पे लिख-लिख के मेरा
हर जगह बेवफा लिख दिया है
मेरा ख़त पढ़ के हैरत है सबको
प्यार में हमने क्या लिख दिया है

- नमालूम
10.05.99

उजड़ने का ग़म

दिल अपना किस को दें कोई दिलदार तो मिले
हम दिल को बेचते हैं खरीदार तो मिले

कोई तो हो जो दिल के उजड़ने ग़म करे
कोई उदासियों का खरीदार तो मिले

दिल क्या है , तुझ पे ज़िन्दगी कर दूंगा फ़िदा
तेरी नज़र में प्यारका इक़रार तो मिले

हम उनके सारे जुल्मो सितम भूल जायेंगे
वो बेवफा कहीं हमें एक बार तो मिले

कितने ही उसकी याद में सावन गुजर गए
शौकत लिखे हैं जिसको वो एक बार तो मिले

हम लेके दिल में आरजू भटकें कहाँ-कहाँ
इस बेवफा जहाँ में कहीं प्यार तो  मिले

- नमालूम

मुझे मेरे यार मिले

तेरा प्यार मुझे मेरे यार मिले
फिर दुनिया मिले चाहे न मिले
तेरे प्यार का दीप जले दिल में
फिर शम्मा चाहे जले न जले

मुझको तमन्ना तेरी वफ़ा की
मैं तो हूँ तेरे प्यार की प्यासी
जन्मों जनम के हमतुम साथी
मेरे प्यारा में तू मेरे साथ चले
फिर दुनिया चाहे चले न चले

रंग दूँगी तुझको प्यार के रंग में
ढल जाउंगी तेरे अंग-अंग में

प्यार मिला मुझे तेरे ही दम से
तेरे होठों की सुर्खी यों ही खिले
फिर कलियाँ चाहे खिले न खिले

- नमालूम 

दिन है सूना

जब से तूने निगाह फेरी है , दिन है सूना तो रात अधूरी है
चाँद भी अब नज़र नहीं आता सितारे भी कम निकलते हैं
याद में तेरी रात-रात भर जागकर हम करवटें बदलते हैं

लुट गयी वो बहार की महफ़िल
लुट गयी हमसे प्यार की मंजिल
ज़िन्दगी की उदास रातों में तेरी यादों के साथ चलते हैं

तुझको पाकर हमें बहार मिली
तुसे से छुटकर ये बात खुली
वाहवाही चमन के फूलों को अपने पैरों से खुद मचलते हैं

क्या कहें तुझसे क्यूँ हुयी तुझसे ये दूरी
हम समझते हैं ये तो थी मेरी मजबूरी
तुझको मालूम क्या तेरी ख्वाबों की नगरी
दिल के ग़म आसुओं में ढलते हैं

हर घड़ी दिल में, तेरी उल्फत के दिए जलते हैं
याद में तेरी रात-रात भर जागकर हम करवटें बदलते हैं

- नमालूम

मुहब्बत

मुहब्बत एक खूबसूरत फूल है
जो हर जानदार के दिल में खिलता है
इसमें से प्यार की खुशबू आती है
ये नफरत की तेज धुप से कुम्हला जाता है
मुहब्बत एक खूबसूरत जज्बे का नाम है

- नमालूम

पढ़ लेती है नज़र

पढ़ लेती है नज़र , हो जाती है खबर
जो दिल में छुपा होता है , सूरत पे लिखा होता है

मेरी आँखों में कुछ भी नहीं तेरी तस्वीर है
तेरी जुल्फों में उलझी हुयी मेरी तकदीर है

अब देख मेरी तकदीर का क्या फैसला होता है
बोल पड़ती हैं आँखें, कभी बनके दिल की जुबां

इन किताबों में लिखी हैं प्यार की कहानियाँ
जब पैर में काँटा चुभता है दर्द बड़ा होता है

तुम सा इस जहाँ में कोई खूबसूरत नहीं
कुछ भी कहने सुनने की अब जरूरत नहीं

कुछ कहने सुनने से क्या होता है
जो दिल में छुपा होता है , सूरत पे लिखा होता है

- नमालूम

सारे सपने कहीं खो गए

सारे सपने कहीं खो गए
हाय हम क्या से क्या हो गए
दिल से तन्हाई का दर्द जीता
क्या कहें हम पे क्या क्या न बीता
तुम न आये मगर जो गए
हाय हम क्या से क्या हो गए

तुमने हमसे कही भी जो बातें
आज पूरी हुयी ग़म की रातें
तुमसे मिलने के दिन तो गए
हाय हम क्या से क्या हो गए

कोई शिकवा न कोई गिला है
हमको कब तुमसे ये ग़म मिला है
हाँ नसीब अपने ही सो गए
हाय हम क्या से क्या हो गए
सारे सपने कहीं खो गए
हाय हम क्या से क्या हो गए

- नमालूम

तुम्हारा नाम लिखा है

तेरे दीवाने ने तेरा मुहब्बत नाम रखा है
मेरा दिल चीर कर देखो तुम्हारा नाम लिखा है
तेरी दीवानी ने तेरा चाहत नाम रखा है
मेरा दिल चीर कर देखो तुम्हारा नाम लिखा है

गजब का रंग लायी है सनम दीवानगी मेरी
यहाँ तक खींच लायी है तुझे ये आशिकी मेरी
कसम है प्यार की मुझको वफ़ा मैंने न निभाई है
तेरे ही नाम की मेंहदी इन हाथों में रचाई है
मेरी चाहत ने ये पहला तुझे सलाम लिखा है

कभी पूछा नहीं तूने ये मुझसे तू मेरा क्या है
अगर पूछे तो मैं कह दूँ मुहब्बत का मसीहा है
तुम्हें चाहा है इतना खुद को चाहा नहीं मैंने
इसका अंजाम क्या होगा कभी सोचा नहीं मैंने
तेरे हाथों में जानेमन मेरा अंजाम लिखा है
मेरा दिल चीरकर देखो तुम्हार नाम लिखा है

- नमालूम
07.09.99

कमरे पर अकेला शांत बैठा था

कमरे पर अकेला शांत बैठा था
कुछ लिखने की अभिलाषा थी चाहत थी
क्या लिखूं समझ में नहीं आता था
किताबें उलटी, पलटी, देखा खिड़की खोली
दरवाजे खोले और इधर उधर झाँका
कुछ समझ में नहीं आया, दोस्त से पूछा
उत्तर दिय कहानी कैसे लिखते हैं
मुझे नहीं मालूम परन्तु इतना
जरूर मालूम है जब भी विचारक
कुछ लिखता है खुले आसमान के नीचे

जाता है, तलाश कर कमरे के बाहर
रोड के किनारे गया हर भौंपो वाले
वाहन को हाथ दिया, खुले आसमान तक
पहुँचाने का आग्रह किया निराश रहा
अन्तोगत्वा एक टेम्पो वाले से भी यही जिक्र किया
उसने टेम्पो रोका उसका धुंआ
मुख पर फेंका, मैं बौखला गया
वापसकमरे पर आया
बेचैनी थी
कमरे से बाहर मैदान पर गया
रात्री 14:30 का समय था
ठंडा मौसम था
बदन पे पतला शौल था
नीचे अगल बगल देखा
कुछ समझ में नहीं आया
तब आसमान की ओर तिरछी निगाहें रखीं
समझ में आ गया
और कहानी लिख दी-----

- उमेश मिश्रा
09.05.99


नहीं ऐसे नहीं

नहीं,  ऐसे नहीं
इस तरह नहीं पढ़ी जाती कविता
घोड़े पर सवार
सचमुच चाहते हो पढ़ना
तो पढ़ो उसे
उस दिन की तरह
जिस दिन पहली बार
पढ़ा था तुमने
उसकी आँखों में
अपना चेहरा

- गोविन्द

मैं दिखावा कभी नहीं करता

मैं दिखावा कभी नहीं करता
वैसे दिख जाये तो क्या कीजै
यों मुझे रोकथाम भाती है
पर तबियत भी भला क्या तोड़ें
मैंने बैसाख जेठ का सूरज
दोपहर बन के झेल डाला है
अब अगर छांव प् गया हूँ तो
उसकी ममता किस तरह छोड़ूँ

- गोपेश

मेरी पसंद

मन के द्वार पहुंचकर भी कुंठाएं लौट गयीं
मन की अपनी सुघड़ आस्था
कजराए विश्वास
धरती जिसकी गंधवती
फूलों का है आकाश
गीतों का उल्लास देख पीड़ाएं लौट गयीं
संगमरमरी देह सपन की
अंगड़ाई न थमे
कटुता की काई उस पार तब
कैसे कभी जमे
शगुन लिए आने वाली बाधाएं लौट गयीं
तैर रहे संवेदन सारे
गलबहियां डाले
भीतर बजते हैं मिठास के
मांदल मतवाले
सन्नाटे की सब उदास छायाएं लौट गयीं
मन के द्वार पहुंचकर
कुंठाएं लौट गयीं

- इंदिरा परमार
09.05.99

जनम जनम की प्यास

मेरे  प्रियतम
है क्या मेरा अपना
जो कर दूँ तुम्हें अर्पित
जब हर रात्री , हर भोर
हर क्षण , हर पल, हर ओर
तुम ही तुम हो
तुम स्वयं अपनी माया
हो स्वयं अपनी छाया
है जब जगत द्वेत से वंचित
तब कैसे क्या करूँ समर्पित !

वाद्द् तुम्हारे
गीत तुम्हारे
स्वर तुम्हारे
भाव भी नहीं हमारे
ब्रह्मांड इतना विराट
कि.-----------
कहीं नहीं दिखते पाट
बह रही ऐसी चेतन रसधार
देह का नहीं बचा आधार
फिर कैसे कोई डूबे
कैसे उबरे
अब तो,
सभी कुछ है -
केवल तुम्हारे सहारे
क्षितिज में समा गए किनारे
मुझे नहीं आता वंदन
न आता करना अभिनंदन
तुम ही चन्दन-
तुम ही धूप
तुम हो वाणी
फिर भी मूक
तुम ही हर रूप
तुम ही बनते अरूप
तुम जग के श्रृंगार
हो तुम कण -कण की पुकार
करो तुम -
मुझ पर उपकार
अब कर लो
मुझे स्वीकार
अंतस भेद मिटा दो
जनम-जनम की प्यास बुझा दो।

- नरेन्द्र मोहन

09. 05. 99


Friday, May 30, 2014

एक लहर

एक लहर
जो निकलती अनायास
पाताल के गर्भ से
और छू लेती
गौरीशंकर को
डुबो देती समस्त संकल्पों को
तोड़ देती
पर्वतों के बाँध
मात्र स्पर्श से जिसके
पिघल जाता
तप का हिमालय
और मिलन की अभिलाषा
फिर जाग जाती
मैं सोचता था
समष्टि के महासागर को
मैं बाँध लूँगा
अपने तप से
कामना को बाँध लूँगा
पर अब तो
उसकी स्मृति भी
कर देती विचलित
चेतना हो जाती व्यथित
काश मैं बता पाता
इस व्यथा को
उन सांस लेते
पत्थरों के बुतों को
जो पुस्तकें लिखते
धर्म ग्रन्थ बांचते
और देते व्यवस्था
थोपी गयी मान्यताओं से
जीवित कर देते
रूढ़ियों का वृत्तासुर
जो नित्य
हर क्षण , हर पल
हांक रहा
घृणा का रथ
निगल रहा, सृजन का पथ

- नरेन्द्र मोहन

09.05.99

सत्य का निवास

आपाधापी और होड़
जीवन का हर मोड़
जब है तुम्हारा ही दिया
तब मैं ही क्यों करूँ भेद
कि.................
क्या है अमृत और क्या विष
जो तुमने दिया
वही मैंने पिया
अंकुर फूटें, न फूटें
वृक्ष बनें या कोपलें रूठें
जीवन लतिका मुरझाये
या सूख जाये
जब सब है-
तुम्हारी इच्छा का ही फल
फिर कैसा आज, कैसा कल
तुम्हारी इच्छा ...........
तुम्हारी ही दी दीक्षा
जो तुम्हारे किसी रूप से
छाया या धूप से
चाहे अनचाहे मिली
और मैंने ग्रहण कर ली
बिना  यह पहचाने
कहाँ है सत्य  का निवास
अथवा है असत्य का वास
फिर तुम हो दूर क्यों?
अब तो मत छोड़ो
मेरा साथ
बढाओ अपना हाथ
मुझे अपनाओ
सारे रहस्य समझाओ
जीवन और मृत्यु
है तुम्हारा रूप
जो धूप छाँव बन आता
और बिना पूछे लौट जाता
तुम्हारे ही गर्भ में
समा जाता

- नरेन्द्र मोहन
9.05.99 

पुकार

जब काल का प्रवाह
कर देता अहं क्षार-क्षार

तब जहाँ से मिल सके
जीवन का अधिकार
वही है मुझे स्वीकार
करना है उससे प्यार
बस चाहिए, उसका ही हाथ
उसका ही विश्वास
वही है.......

जन्म जन्मान्तरों की आस
वही है सर्वरक्षक
कलुष भक्षक
अनंत-अकाल
बिन लय- बिन ताल
जानता सभी सुरों की चाल
बिन गाये
गाता सुगम संगीत
कराता आनंद की प्रतीति
बना लेता सर्व को मीत
हो स्थिर .....

जो अहर्निश डोलता
हर द्वार खोलता
बन अमृत झरता
शून्य में सागर भरता
देकर काल को अभयदान
कराता स्वयं की पहचान
जानूं न जानूं
भले ही न पहचानूँ
पर .............

मुझे करने दो
उसका ही वंदन
उसका ही अभिनन्दन
वही तो है -
मेरे जीवन का आधार
जन्म - जन्मान्तरों की पुकार

- नरेन्द्र मोहन

किसी से कम नहीं हैं

मेरे भी ग़म किसी से कम नहीं हैं
मगर रोने का ये मौसम नहीं है

मेरे जख्मों को जो थोड़ा सा भर दे
यहाँ ऐसा कोई मरहम नहीं है

तड़पते देखा है मौजों को जबसे
बिछड़ने का किसी से ग़म नहीं है

- नमालूम

जो दुआ न करे

वह दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझको भूल के जिंदा रहूँ ख़ुदा न करे

रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िन्दगी बनकर
ये बात और है मेरी ज़िन्दगी वफ़ा न करे

ये ठीक है नहीं नरता कोई जुदाई में
ख़ुदा किसी को किसी से मगर जुदा न करे

सुना है उसकी मुहब्बत दुआएं देती हैं
जो दिल में चोट खाए मगर गिला न करे

- नमालूम

Thursday, May 29, 2014

मैं जिस दिन भुला दूँ

मैं जिस दिन भुला दूँ तेरा प्यार दिल से
वो दिन आखिरी हो ज़िन्दगी का
ये आँखें उसी रात हो जाएँ अंधी
जो तेरे सिवा देखें सपना किसी का ...

मुझे अपने दिल से उतरने न देना
मैं खुशबू हूँ इसको बिखरने न देना
हमेशा रहूँ मैं तेरी बाजुओं में
न टूटे ये बंधन कभी दोस्ती का

मेरी धड़कनों में मुहब्बत है तेरी
मेरी ज़िन्दगी अब अमानत है तेरी
तमन्ना है ये
निशां हो वहां पर मेरी बंदगी का

- नमालूम

मेरी इक्कावन कविताएँ से ......

1.  आदमी सिर्फ आदमी होता है

आदमी न ऊंचा होता है, न बड़ा होता है
आदमी सिर्फ आदमी होता है
ऊंचे पहाड़ पर पेड़ नहीं लगते, पौधेनहीं उगते
न ही घास जमती है
जमती है तो सिर्फ वर्फ
जो कफ़न की तरह सफ़ेद होती है
और मौत की तरह ठंडी होती है

2. तन पर पहरा, भटक रहा मन
साथी है केवल सूनापन
मैं रोता आसपास जब
कोई नहीं होता है
दूर कहीं कोई रोता है

3. लानत उनकी भरी जवानी पर
जो सुख की नींद सो रहे
लानत है हम कोटि -कोटि
किन्तु किसी के चरण धो रहे

- अटल बिहारी वाजपेयी
27.04.99 

Wednesday, May 28, 2014

विपत्ति को संपत्ति बनाईये

एक चित्रकार ने एक  चित्र बनाया जिसमें सर्प, मोर, हिरन, और शेर एक साथ एक वृक्ष की छाया में बैठे थे. चित्र के नीचे यह पंक्ति लिखी हुयी थी-
' कहलाने एकत बसत अहि -मयूर-मृग-बाघ'.

जयपुर के राजा मिर्जा जय सिंह ने उस चित्र को खरीद लिया. और अपने राज कवि बिहारी लाल से कहा कि उस दोहे की पूर्ती करें. बिहारी लाल ने तत्काल यह पंक्ति लिख कर दोहे को पूरा कर दिया-
' जगत तपोवन सो कियो दीरध दाघ निदाघ'

कवि का तात्पर्य स्पष्ट था कि कड़ी गर्मी ने जगत को तपोवन के समान पवित्र कर दिया है और ये पशु अपना सहज बैर भाव भूलकर एक वृक्ष की छाया में बैठ गए हैं.

विपत्ति के समय पशु पक्षी भी सहज बैर भाव भूल जाते हैं. ऐसी बात नहीं है, मनुष्य भी ऐसा करते हुए देखे जाते हैं. देश में विदेशी आक्रमण की दशा में विभिन्न राजनीतिक दल, सांप्रदायिक दल आदि अपना पारस्परिक मतभेद भुलाकर विदेशी आक्रान्ता के विरुद्ध एक जुट हो जाते हैं. आग लगने पर, भूचाल आदि दैवी आपदा आने पर सब लोग एक दुसरे की मदद करते हुए देखे जाते हैं. और तो और विरोधी अथवा जानी दुश्मन के पुत्र के निधन के शोक पर लोग आंसू बहते हुए देखे जाते हैं. इस सन्दर्भ में हम सन 1947 में भारत विभाजन के अवसर पर  तथाकथित शरणार्थियों के पलायन की घटना की चर्चा करना चाहेंगे. कई-कई हजार स्त्री पुरुष कई-कई दिनों तक एक साथ रहने को विवश हुए थे. परन्तु उस अवसर पर चोरी, अपहरण, बलात्कार आदि की एक भी घटना नहीं घटी आदि .

व्यक्तिगत जीवन में भी विपत्ति हमारे मनोभावों का परिष्कार करती हुयी देखि जाती है.  विपत्ति में हम बैर भाव भूलते ही हैं हम अपने दोषों को दूर करने का संकल्प करते हुए देखे जाते हैं. इतना ही नहीं विपत्ति अथवा दुःख के समय हम भगवान   का स्मरण जैसा पवित्र कार्य करने लगते हैं. वह एक विपत्ति का ही अवसर था जब महाराणा प्रताप को मरणासन्न अवस्था में देखकर उनके खून का प्यासा छोटा भाई समस्त शत्रु भाव को भूलकर उनके चरण में गिर पड़ा था. इस सन्दर्भ में महाभारत का यह कथन मनन करने योग्य है- विपत्ति के आने पर अपनी रक्षा के लिए व्यक्ति को अपने पड़ोसी शत्रु से भी मेल कर लेना चाहिए. विपत्ति के भावात्मक पक्ष को लक्ष्य करके लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने लिखा है कि -
' कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण है, जो मनुष्य साहस के साथ उन्हें सहन करते हैं वे अपने जीवन में विजयी होते हैं'.

विपत्ति के हमारा मन प्रायः अंतर्मुखी हो जाता है, हम विपत्ति के कारणों पर तथा उसके निवारण के उपायों पर गंभीरता पूर्वक विचार करने लगते हैं. और प्रायः ऐसा होता है कि विपत्ति की अग्नि में तपकर हमारे कुछ सद्गुण उभरकर आ जाते हैं. डिजरैली ने बहुत ठीक कहा है कि विपत्ति सहना कोई शिक्षा नहीं है. यह सत्य तो सर्वविदित है कि विपत्ति के समय हमें शत्रु मित्र की पहचान भली प्रकार से हो जाती है. प्लूटार्क नामक विचारक का यह कथन मनन करने योग्य है -

' विपत्ति ही केवल ऐसी तुला है जिस पर हम मित्रों को तौल सकते हैं'
गोस्वामी तुलसीदास का यह कथन उल्लेखनीय है-
' धीरज, धर्म,मित्र ,अरु नारी
आपातकाल परखिये चारी '
अर्थात विपत्ति के समय ही अपने और पराये की पहचान हो जाती है.

विपत्ति वास्तव में एक बहुत बड़ी संपत्ति है. वह हमारे मनोविकारों का परिष्कार करके मन में सद्भाव, सहयोग, शुभ संकल्प आत्म विश्वास आदि श्रेष्ठ गुणों को विकसित करती है.

विपत्ति हमारे मन के मेल को काटती है और हमें भावात्मक दृष्टि प्रदान करती है.

उपन्यास सम्राट प्रेमचंद का यह कथन हमारा मार्गदर्शक होना चाहिए-

' विपत्ति में भी जिस ह्रदय में सद्ज्ञान न हो, वह ऐसा सूखा हुआ वृक्ष है जो पानी पाकर पनपता नहीं , बल्कि सड़ जाता है'

27.04.99

मैं तुम्हें प्यार नहीं करती हूँ

मैं तुम्हें प्यार नहीं करती हूँ,
 न ! मैं तुम्हें प्यार नहीं करती हूँ .
फिर भी मैं उदास रहती हूँ. जब तुम पास नहीं होते हो. और मैं उस नीले चमकदार आकाश से भी ईर्ष्या करती हूँ जिसके नीचे तुम खड़े होगे और जिसके सितारे तुम्हें  देख सकते हैं.

मैं तुम्हें प्यार नहीं करती हूँ- फिर भी तुम्हारी बोलती हुयी आँखें जिनकी नीलिमा में गहराई, चमक और अभिव्यक्ति है- मेरी निर्निमेष पलकों और जागते अर्धरात्री के आकाश में नाच जाती है ..

और किसी की आँखों के बारे में ऐसा नहीं होता .

न मुझे मालूम है कि मैं तुम्हें प्यार करती हूँ, लेकिन फिर भी कोई शायद मेरे साफ़ दिल पर विश्वास नहीं करेगा. और अक्सर मैंने देखा है कि लोग मुझे देखकर मुस्करा देते हैं क्योंकि मैं उधर एकटक देखती हूँ, जिस पर तुम आया करते हो.

- लेडी नार्टन

Tuesday, May 27, 2014

' गुनाहों का देवता ' से -

मानव जाति दुर्बल नहीं है. अपने विकास क्रम में वह उन्हीं संस्थाओं, रीति रिवाजों और परम्पराओं को रहने देती है जो उसके असितत्व के लिए बहुत आवश्यक होती है. अगर वे आवश्यक न हुयी तो मानव उनसे छुटकारा मांग लेता है.

प्रेम विवाह अक्सर असफल होते हैं, लेकिन सम्भव है वह प्रेम न होता हो. जहाँ सच्चा प्रेम होगा वहां कभी असफल विवाह नहीं होंगे.

घवराओ न देवता, तुम्हारी उज्जवल साधना में कालिख नहीं लगाउंगी.अपने आँचल में पोंछ लूंगी.

अक्सर कब, कहाँ और कैसे मन अपने को हार बैठता है. यह खुद हमें पता नहीं लगता. मालूम तब होता है जब जिसके कदम पर हमने सर रखा है वह झटके से अपने कदम घसीट ले. उस वक़्त हमारी नींद टूट जाती है और तब जाकर हम देखते हैं कि अरे हमारा सिर तो किसी के क़दमों पर रखा हुआ था. और उनके सहारे आराम से सोते हुए हम सपना देख रहे थे कि हमारा सिर कहीं झुका ही नहीं.

 मैं तुम्हारे मन को समझता हूँ सुधा ! तुम्हारे मन ने जो तुमसे नहीं कहा, वह मुझसे कह दिया था. लेकिन सुधा, हम दोनों एक दुसरे की ज़िन्दगी में क्या इसीलिए आये कि एक दूसरे को कमजोर बना दें. या हम लोगों ने स्वर्ग की ऊचाईयों पर बैठकर आत्मा का संगीत सुना सिर्फ इसलिए कि उसे अपने ब्याह की शहनाई में बदल दें.

तुम गुस्सा मत हो, दुखी मत हो, तुम आज्ञा दोगे तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ, लेकिन हत्या करने से पहले यह तो देख लो कि मेरे ह्रदय में क्या है.

जीवन में अलगाव, दूरी, दुःख और पीड़ा आदमी को महान बना सकती है. भावुकता और सुख हमें ऊंचे नहीं उठाते.

सुधा के आंसू जैसे नसों के सहारे उसके ह्रदय में उतर गए और जब ह्रदय डूबने लगा तो उसकी पलकों पर उतरा आये.

सुधा के मन पर जो कुछ भी धीरे-धीरे मरघट की उदासी की तरह बैठता जा रहा था. और चंदर अपने प्यार से , अपनी मुस्कानों से , अपने आंसुओं से धो देने के लिए व्याकुल हो उठा था. लेकिन यह ज़िन्दगी थी जहाँ प्यार हार जाता है, मुस्कानें हार जाती हैं. आंसू हार जाते हैं.- तश्तरी, प्याले,कुल्हड़ , पत्तलें ,कालीनें , दरियां और बाजे जीत जाते हैं. जहाँ अपनी ज़िन्दगी की प्रेरणा के आंसू गिनने के बजाये कुल्हड़ और प्याले गिनवाकर रखने पड़ते हैं और जहाँ किसी आत्मा की उदासी को अपने आंसुओं से धोने के बजाये पत्तलें धुलवाना ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. 

मुझे किसी का डर नहीं, तुम जो दंड दे चुके हो, उससे बड़ा दण्ड तो अब भगवान भी नहीं दे सकेंगे.

जब आदमी अपने हाथ से आंसू मोल लेता है अपने आप दर्द का सौदा करता है तब दर्द और आंसू तकलीफदेह नहीं लगते.और जब कोई ऐसा हो जो आपके दर्द के आधार पर आपको देवता बनाने के लिए तैयार हो और आपके एक-एक आंसू पर अपने सौ-सौ आंसू बिखेर दे, तब तो कभी -कभी तकलीफ भी भली मालूम देने लगती है.

जब तक सुधा सामने रही कभी उसे यह नहीं मालूम हुआ कि सुधा का क्या महत्व  है उसकी ज़िन्दगी में . आज सुधा दूर थी तो उसने देखा कि उसकी साँसों से भी जयादा आवश्यक थी ज़िन्दगी के लिए...

आदमी हँसता है, दुःख दर्द सभी में हँसता है. जैसे -जैसे आदमी की प्रसन्नता थक जाती है वैसे ही कभी-कभी रोते-रोते आदमी की उदासी थक जाती है और आदमी करवट बदलता है ताकि हंसी की छांह में कुछ विश्राम कर फिर वह आंसुओं की कड़ी धूप में चल सके.

अविश्वास आदमी की प्रवृत्तियों को जितना बिगाड़ता है विश्वास आदमी को उतना ही बनाता है ऐसे अवसरों पर जब मनुष्य को गंभीरतम उत्तरदायित्व सौंपा जाता है तब स्वभावतः आदमी के चरित्र में एक विचित्र सा निखार आ जाता है.
 
जीवन की समस्याओं  के अंतर्विरोधों में जब आदमी दोनों पक्षों को समझ लेता है तब उसके मन में एक ठहराव आ जाता है. वह भावना से ऊपर उठकर स्वच्छ बौद्धिक धरातल पर ज़िन्दगी को समझने की कोशिश करने लगता है. चंदर अब भावना से हटकर ज़िन्दगी को समझने की कोशिश करने लगा था. वह अब भावना से डरता था. भावना के तूफ़ान में इतनी ठोकरें खाकर अब उसने बुद्धि की शरण ली थी और एक पलायन वादी की तरह भावना से जागकर बुद्धि की एकांगिता में छिप गया था. कभी भावुकता से नफरत करता था, अब वह भावना से ही नफरत करने लगा था.

मेरी आत्मा सिर्फ तुम्हारे लिए बनी थी, उसके रेशे में वह तत्व है जो तुम्हारी ही पूजा के लिए थे. तुमने मुझे दूर फेंक दिया, लेकिन इस दूरी के अँधेरे में भी जन्म-जन्मान्तर तक भटकती हुयी सिर्फ तुम्हीं को ढूंढूंगी.

मनुष्य का एक स्वभाव होता है. जब वह दुसरे पर दया करता है तो वह चाहता है कि याचक पूरी तरह विनम्र होकर उसे स्वीकार करे. अगर याचक दान लेने में कहीं भी स्वाभिमान दिखलाता है तो आदमी अपनी दानवृत्तिऔर दयाभाव भूलकर नृशंस्ता से उसके स्वाभिमान को कुचलने में व्यस्त हो जाता है.

नफ़रत से नफरत बढती है, प्यार से प्यार जागता है. बिनती के मन का सारा स्नेह सूख सा गया था. वह चिडचिडी , स्वाभिमानी , गंभीर और रूखी हो गयी थी. लेकिन औरत बहुत कमजोर होती है. ईश्वर न करे कोई उसके ह्रदय की ममता को छू ले. वह सब कुछ बर्दाश्त कर लेती है लेकिन अगर कोई , किसी तरह उसके मन के रस को जगा दे, तो वह फिर अपना सब अभिमान भूल जाती है.

तुम बहुत गहराई से सोचते हो . लेकिन मैं तो एक मोटी सी बात जानती हूँ कि जिसके जीवन में वह प्यास लग जाती है वह फिर किसी भी सीमा तक गिर सकता है. लेकिन जिसने त्याग किया, जिसकी कल्पना जागी, वह किसी भी सीमा तक उठ सकता है. मैंने तुम्हें उठते हुए देखा है.

एक क्षण आता है कि आदमी प्यार से विद्रोह कर चुका है अपने जीवन की प्रेरणा मूर्ती की गोद में बहुत दिन तक निर्वासित रह चूका है. उसका मन पागल हो उठता है. फिर से प्यार करने को, अपने मन का दुलार फूलों की तरह बिखरा देने को.

तुम्हें खोकर, तुम्हारे प्यार को खोकर मैं देख चुका हूँ कि मैं आदमी नहीं रह पाता, जानवर बन जाता है. सुधा, अगर तुम आज से कुछ महीनों पहले मिल जाती तो जो ज़हर मेरे मन में घुट रहा है वह तुम्हारे सामने व्यक्त करके मैं बिलकुल निश्चिन्त हो जाता.....

मेरे भगवान, मेरे प्यार ने मुझे अब उस दुनिया में पहुंचा दिया है जो नैतिक-अनैतिक  से ऊपर है.
*** शरीर कि प्यास भी उतनी ही पवित्र और स्वाभाविक है जितनी आत्मा की पूजा आत्मा की पूजा और शरीर की प्यास दोनों अभिन्न हैं. आत्मा की अभिव्यक्ति शरीर से है. शरीर कसंस्कर, शरीर का संतुलन, आत्मा से है. जो आत्मा को शरीर से अलग कर देता है वह मन  भयंकर तूफानों में उलझकर चूर-चूर हो जाता है. चंदर, मैं तुम्हारी आत्मा थी. तुम मेरे शरीर थे. पता नहीं कैसे हम लोग अलग हो गए.

ज़िन्दगी का यंत्रणा चक्र एक वृत्त पूरा कर चुका था. सितारे एक क्षितिज से उठकर, आसमान पार कर दुसरे क्षितिज तक पहुँच चुके थे. साल डेढ़ साल पहले सहसा ज़िन्दगी की लहरों में उथल-पुथल मच गयी थी. और विक्षुब्ध महासागर की तरह भूखी लहरों कि बाहें पसार कर वह किसी को दबोच लेने में हुंकार उठी थी. अपनी भयानक लहरों के शिकंजे में सभी को झकझोर कर सभी विश्वासों और भावनाओं को चकनाचूर कर अंत में सबसे प्यारे सबसे मासूम सबसे सुकुमार व्यक्तित्व को निगल कर अब धरातल शांत हो गया था. तूफ़ान थम गया था. बादल खुल गए थे और सितारे फिर आसमान के घोंसले से भयभीत विह्गे शावकों की तरह झाँक रहे थे.

' कैफ बरदोश बादलों को न देख
बेखबर, तू न कुचल जाये कहीं'
27.04.99


 


' तरुण के स्वप्न' से.....

भारतीय पति -पत्नी एक दूसरे दो अलग-अलग  परछाइयाँ होते हैं - दो अलग-अलग शख्सियत जो डॉ रेल की पटरियों की तरह सदा जुदा रहते हैं और जिन पर ज़िन्दगी की गाड़ी दौड़ती है.

इस संसार में हर वस्तु नाश को प्राप्त होती है. और होगी- किन्तु विचार, आदर्श तथा स्वप्न नष्ट नहीं होते. किसी एक व्यक्ति को भले ही एक विचार के लिए मरना पड़े - किन्तु उसकी मृत्यु के उपरांत वह विचार हजारों व्यक्तियों के रूप में अवतरित होगा. इसी प्रकार विकास का चक्र घूमता रहता है और एक पीढ़ी अपने विचारों और स्वप्नों को दूसरी पीढ़ी को विरासत के रूप में देती रहती है. 

'स्मृति : एक प्रेम की' से .......

कभी-कभी किसी की चुप्पी तोड़ने में बड़ा संकोच होता है. ऐसा लगता है जैसे किसी पवित्र स्थान पर अपवित्र कार्य करने जा रहे हो.

जो जिसका है वह उसमें मुक्ति नहीं पा सकता. हम किसी भी चीज को भोग कर उसका त्याग नहीं कर सकते हैं.

अडयार के समुद्र तट की कई यादें मेरे पास हैं. पर मैंने उन यादों का कोई एल्बम बनाकर नहीं रखा है. जो सिलसिलेवार किसी को दिखा सकूँ. मेरी यादों के कई एल्बमों में ये चित्र बिखरे पड़े हैं. कभी कोई अल्बम खोलने से कोई चित्र दिखाई दे जाता है.

दुनिया में डॉ इन्सान सदा एक दूसरे के लिए अजनबी ही बने रहे हैं, वे सदा ही एक दूसरे के लिए अजनबी ही बने रहेंगे.

तुमने उस रात को आकाश के तारों तले धरती की उस सुनसान राह पर उस औरत को नहीं अपनाया था, जिससे तुम कह रहे हो, तुमने प्रेम किया था.

 

Friday, May 23, 2014

दिव्या से ....

आकाशगामी चंद्रमा तो स्थिर, गंभीर गति से अपनी यात्रा पूर्ण किये जाता है, परन्तु तिथले जल में पड़ता  उसका प्रतिबिम्ब साधारण कारणों से भी क्षुब्ध है .

' अनभ्यास विद्या का शत्रु है'

दिव्या, मैं मृत्यु भय नहीं मानता ... मृत्यु क्या है ? असितत्व का अंत. जिसका असितत्व नहीं, जिसे अनुभूति नहीं. वह भय अनुभव भी नहीं कर सकत.भय है जीवित रहकर पीड़ा और पराभव सहने में, भय है, जीवन भर की पीड़ा और पराभव में. तुम्हें अंक में लेकर समाप्त हो जाने से कौन इच्छा अपूर्ण रह जाएगी ? फिर उसमें भय क्या ? वह सुखद असितत्व का सुखद अंत है.

सुख और दुःख अन्योंयाश्रम हैं उनका असितत्व केवल विचार और अनुभूति के विश्वास में है.  इच्छा ही सर्वावस्था में दुःख का मूल है. एक इच्छा कि पूर्ती दूसरी इच्छा को जन्म देती है . वास्तविक सुख इच्छा की पूर्ती में नहीं इच्छा की निवृत्ति में है.


वेश्या का जीवन मोटी  बत्ती और राल मिले तेल से पूर्ण दीपक की तरह है.अनुकूल वायु में अति प्रज्ज्वलित लौ की भांति या उल्कापात की भांति क्षणिक तीव्र प्रकाश करके शीघ्र समाप्त हो जाता है. कुलवधू का जीवन माध्यम प्रकाश से चिरकाल तक टिमटिमाते दीपक की भांति है. ममता भरी शरण के हाथ प्रतिकूल परिस्थितियों के झंझावत से उसकी रक्षा करते हैं. यह अपने निर्वाण से पूर्व अपने असितत्व से दूसरे दीप जलाकर अपना प्रकाश उसमें देख पाती है. स्वयं उसका निर्वाण  हो जाने पर भी उसका प्रकाश बना रहता है. .... ऐसी परंपरा ही मनुष्य की अमरता है.

 यही है वेश्या के जीवन का विद्रूप. यही है उसकी सफलता, समृद्धि और आत्मनिर्भरता. वेश्या देती है अपना असितत्व और पाती है केवल दृव्य.  परन्तु पराश्रिता कुल- वधु अपने समर्पण के मूल्य में दुसरे पुरुष को पा जाती है और किसी दूसरे पर भी अधिकार पाती है. 

' प्रयत्न और चेष्टा जीवन का स्वभाव और गुण हैं. जब तक जीवन है, प्रयत्न और चेष्टा रहना स्वाभाविक है'. 

सुख और दुःख अन्योंयाश्र्य हैं. सुख की इच्छा से ही दुःख होता है. संसार में जितना सुख है, उससे बहुत अधिक दुःख है, जब संसार ही दुःख पूर्ण है तो वह उससे भागकर कहाँ जायेगा.

...... निरंतर प्रयत्न ही जीवन का लक्षण है. जीवन के एक प्रयत्न या एक अंश की विफलता सम्पूर्ण जीवन की विफलता नहीं है.

जागते हुए चीटीं कि शक्ति सोये हुए हाथी से अधिक होती है. 

अनेक परस्पर विरोधी तत्वों का समुच्चय ही जीवन है. एक ही प्रयोजन से मनुष्य परस्पर विरोधी व्यव्हार करता है. नारी के प्रति अनुराग से, उसके आश्रय की कामना से ही पुरुष उसे अपने अधीन रख कर उसे आत्मनिर्भर नहीं रहने देता. नारी प्रकृति के विधान से नहीं, समाज के विधान से भोग्य है. प्रकृति में और समाज में भी स्त्री परुष अन्योंयाश्र्य है. पुरुष का प्रश्रय पाने से ही नारी परवश है. परन्तु भद्रे, नारी के जीवन की सार्थकता के लिए पुरुष का आश्रय आवश्यक है. और नारी भी पुरुष का आश्रय है. ....

मैं नहीं तू

स्वर्ग और नरक की चिंता को छोड़कर
अपने 'स्वं' और 'अहम्' को भूलकर
केवल 'तुझे' याद कर
धर्म, संप्रदाय की विधाओं को छोड़कर
अशिक्षा, दरिद्रता शोषण को दूर
पीड़ित मानवता की सेवा में
बुद्ध की भांति
जीवंन उत्सर्ग हेतु
परायण है- नव प्रभात को
आदि है यह
अंत है
अंत तक

' एक चमत्कारी गौरवशाली - भावी भारत का उदय होगा. मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह होकर रहेगा. पहले से कहीं अधिक महँ भारत का उदय अवश्यम्भावी है'

' नारी सृष्टि का साधन है. सृष्टि की आदि शक्ति का क्षेत्र वह समाज और कुल का केंद्र है. पुरुष उसके चरों ओर घूमता है जैसे कोल्हू का बैल. '

- नमालूम

स्वामी विवेकानंद के कुछ विचार

' जागो, उठो और तब तक चलते रहो जब तक तुम्हें अपने लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये'

हमारे लिए समय रोने के लिए नहीं है. हम आनंद के आंसू भी नहीं बहा सकते. हम बहुत रो चुके हैं. यह समय कोमल बन्ने का नहीं है कोमलता हमारे जीवन में इतने लम्बे समय से चली आरही है कि हम रुई के ढेर सदृश हो गए हैं. ... आज हमरे देश को जिन चीजों की आवश्यकता है वे हैं लोहे की मांसपेशियां, इस्पात की तन्तिकाएं प्रकांड संकल्प जिसका कोई प्रतिरोध न कर सके. जो अपना काम हर प्रकार से पूरा कर ले, चाहे उसके लिए महासागर के तल में जाकर मृत्यु का आमना सामना ही क्यों न करना पड़े. यहाँ है जिसकी हमें आवश्यकता है और इसका हम तभी सृजन कर सकते हैं तभी स्थापना कर सकते हैं और उसे तभी शक्तिशाली बना सकते हैं जबकि हम अद्द्वेत के आदर्श का साक्षात्कार कर लें, सबकी एकता के आदर्श की अनुभूति कर लें. अपने में विश्वास, विश्वास और विश्वास. यदि तुम्हें अपने तेतीस करोड़ देवताओं में तथा उन सब देवताओं में विश्वास है जिन्हें विदेशियों ने तुम्हारे बीच प्रतिष्ठित कर दिया है. किन्तु फिर भी अपने में विश्वास नहीं है तो तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता. अपने में विश्वास रखो और उस विश्वास पर दृढ़ता पूर्वक खड़े रहो. ..

.... क्या कारण है कि हम तेतीस करोड़ लोगों पर पिछले एक हजार वर्षों से मुट्ठी भर विदेशी शाशन करते आये हैं. क्योंकि उन्हें अपने में विश्वास था हमें नहीं है.

'व्यक्तित्व मेरा आदर्श वाक्य है व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने के अतिरिक्त मेरी अन्य कोई आकांक्षा नहीं है'

'अकेले एक व्यक्ति में सम्पूर्ण विश्व निहित होता है '

' जब तक मेरे देश का एक कुत्ता भी भूखा रहता है जब तक उसको भोजन देना और उसकी देखभाल करना ही मेरा धर्म है इसके अतिरिक्त और जो कुछ है वह अधर्म है अथवा ऋण धर्म है.'

' भुखमरी से पीड़ित मनुष्य को धर्म का उपदेश देना कोरा उपहास है .....भारत वह देश है जहाँ दसियों लाख  लोग  महुआ का फूल खाकर रहते हैं. और दस या बीस लाख साधू तथा एक करोड़ के लगभग व्राह्मण इन लोगों का रस चूसते हैं.'
 

Wednesday, May 21, 2014

ध्रुवस्वामिनी से ......

कितना अनुभूति पूर्ण था वह एक क्षण का आलिंगन ! कितने संतोष से भरा था. नियति ने अज्ञात भाव से मानो लू से तपी हुई वसुधा को क्षितिज के निर्जन से सांयकालीन  शीतल आकाश से मिला दिया हो. जिस वायु विहीन प्रदेश में उखड़ी हुयी साँसों पर बंधन हो , अर्गला हो, वहां रहते रहते यह जीवन असहाय हो गया था. तो भी मरूंगी नहीं. संसार के कुछ दिन विधाता के विधान में अपने लिए सुरक्षित करा लूंगी. कुमार ! तुमने वही किया, जिसे मैं बचाती रही. तुम्हारे उपकार और स्नेह की वर्षा से मैं भीगी जा रही हूँ .ओह!, इस वक्ष स्थल में डॉ ह्रदय हैं क्या ? जब अन्तरंग 'हाँ' करना चाहता है , तब ऊपरी मन न क्यों कहला देता है ?

कुमार ! यह मृत्यु और निर्वासन का सुख, तुम अकेले ही लोगे, ऐसा नहीं हो सकता. मृत्यु के शहर में प्रवेश के समय मैं भी तुम्हारी ज्योति बनकर बुझ जाने की कामना रखती हूँ.

प्रणय ! प्रेम जब सामने से आते हुए तीव्र आलोक की तरह आँखों में प्रकाश पुंज उड़ेल देता है, तब सामने की  सब चीजें और भी अस्पष्ट हो जाती हैं. अपनी ओर से कोई भी प्रकाश किरण नहीं. तब वही केवल वही ! हो पागलपन , भूल हो, दुःख मिले , प्रेम करने की एक ऋतु होती है. उसमें चूकना, उसमें सोच समझ कर चलना दोनों बराबर हैं. सुना है दोनों ही संसार के चतुरों की दृष्टि में मूर्ख बनते हैं.

प्रश्न स्वाम किसी के सामने  नहीं आते. मैं तो समझती हूँ, मनुष्य उन्हें जीवन के लिए उपयोगी समझता है. मकड़ी कि तरह लटकने के लिए अपने आप ही जाला बुनता है. जीवन का प्राथमिक प्रसन्न उल्लास मनुष्य के भविष्य में मंगल और सौभाग्य को आम्नात्रित करता है उससे उदासीन न होना चाहिए.

तुम्हारी स्नेह सूचनाओं की सहज प्रसन्नता और मधुर आलोपों ने जिस दिन मन के नीरस और नीरव शून्य में संगीत की वसंत की  और मकरंद की सृष्टि कि थी . उसी दिन से मैं अनुभूतिमयी बन गयी हूँ. क्या वह मेरा भ्रम था ? कह दो-कह दो वह तेरी भूल थी.

इस भीषण संसार में एक प्रेम करने वाले ह्रदय को खो देना, सबसे बड़ी हानि है. डॉ प्यार करने वाले हृदयों के बीच में स्वर्गीय ज्योति का निवास है.

अभावमयी लघुता में मनुष्य अपने को महत्वपूर्ण दिखाने का अभियान न करे तो क्या अच्छा नहीं है ?

पाषाणी के भीतर भी कितने मधुर स्रोत बहते रहते हैं. उनमें मदिरा नहीं, शीतल जल की धारा बहती है.
प्यासों की तृप्ति -

प्रेम का नाम न लो. वह एक पीड़ा थी जो छूट गयी. उसकी कसक भी धीरे- धीरे दूर हो जाएगी . राजा, मैं तुम्हें प्यार नहीं करती मैं तो दर्प से दीप्त तुम्हारी महत्व्मयी पुरुष - मूर्ती की पुजारिन थी, जिसमें पृथ्वी पर अपने पैरों से खड़े होने कि दृढ़ता थी. इस स्वार्थ मलिन कलुष से भरी मूर्ती से मेरा परिचक्र नहीं.

अपनी तेज कि अग्नि में जो सब कुछ भस्म कर सकता हो, उस दृढ़ता का, आकाश के नक्षत्र कुछ बना बिगड़ नहीं सकते. तुम आशंका मात्र से दुर्बल-कम्पित और भयभीत हो.

'तुम आज कितनी प्रसन्न हो'
-और तुम क्यों नहीं ?
-'मेरे जीवन निशीथ का ध्रुव नक्षत्र इस घोर अन्धकार में अपनी स्थिर उज्ज्वलता से चमक रहा है. आज महोत्सव है न'.
स्त्री और पुरुष का परस्पर विश्वासपूर्वक अधिकार रक्षा और सहयोग ही तो विवाह कहा जाता है. यदि ऐसा न हो तो धर्म और विवाह खेल है.

' रानी, तुम भी स्त्री हो. क्या स्त्री की व्यथा न समझोगी? आज तुम्हारी विजय का अंधकार तुम्हारे शाश्वत स्त्रीत्व को ढक ले, किन्तु सबके जीवन में एक बार प्रेम कि दीपावली जलती है. जली होगी अवश्य. तुम्हारे भी जीवन में आलोक का वह महोत्सव आया होगा, जिसमें ह्रदय, ह्रदय को पहचानने का प्रयत्न करता है. उदार बनता है. और सर्वस्व दान करने का उत्साह रखता हो'

' स्त्रियों के इस बलिदान का भी कोई मूल्य नहीं. कितनी असहाय दशा है. अपने निर्बल और अवलंब खोजने वाले हाथों से यह पुरुषों के चरणों को पकड़ती है. और वह सदैव ही इनको तिरस्कार \, घृणा और दुर्दशा की भिक्षा से उपकृत करता है. तब भी वह बावली मानती है.'

' रोग- जर्जर शरीर पर अलंकारों की सजावट मलिनता और कलुष की ढेर पर बाहरी कुकम्भ - केसर का लेप गौरव नहीं बढाता'.    


कर्म भूमि से ....

ज़िन्दगी कि वह उम्र जब इन्सान को मुहब्बत की सबसे ज्यादा जरूरत होती है बचपन है. उस वक़्त पौधे को तरी मिल जाये, तो ज़िन्दगी भर के लिए उसकी जड़ें मजबूत हो जाती हैं. उस वक़्त खुराक न पाकर ज़िन्दगी खुश्क हो जाती है. मेरी माँ का उसी ज़माने में देहांत हुआ और तब से मेरी रूह को खुराक नहीं मिली. वही भूख मेरी ज़िन्दगी है.

जिन वृक्षों कि जड़ें गहरी होती हैं. उन्हें बार-बार सींचने कि जरूरत नहीं होती. वह जमीन से ही आद्रता लेकर फलते फूलते हैं. सकीना और अमर का प्रेम वही वृक्ष  है. उसे सजग रखने के लिए बार-बार मिलने की जरूरत नहीं.  

मैं प्रेम को संदेह से ऊपर समझती हूँ

 मैं प्रेम को संदेह से ऊपर समझती हूँ वह देह की वस्तु नहीं  आत्मा की वास्तु है. संदेह का वहां जरा भी स्थान नहीं है . और हिंसा तो संदेह का ही परिणाम है. वह सम्पूर्ण आत्मसमर्पण है. उसके मंदिर में तुम परीक्षक बन कर नहीं उपासक बनकर ही वरदान पा सकते हो.

जिसे सच्चा प्रेम कहते हैं, केवल बंधन में बंध जाने के बाद ही पैदा होता है. इसके पहले जो प्रेम होता है वह तो रूप का आसक्ति मात्र है, जिसका कोई टिकाव नहीं, मगर इसके पहले यह निश्चय तो कर लेना ही था कि जो पत्थर साहचर्य के खराद पर चढ़ेगा, उसमें खराडे जाने कि क्षमता है कि नहीं सभी पत्थर तो खराद पर चढ़ कर सुन्दर मूर्तियाँ नहीं बना पाते.

शरीर मात्र से प्रेम करना अपने कोमल और मासूम ह्रदय को बहलाना है. शांत एवं शुभ्र प्रेम- पूर्ण व्यवहार भाग्यशील लोग ही प्राप्त कर पाते हैं.

जो प्रसन्न होकर हँसता है वही दुखी होकर रोता है.

धन ने आजतक किसी नारी के ह्रदय पर विजय नहीं पायी. पायी है और न पा सकेगा.  

जो पूजाएँ अधूरी रहीं

जो पूजाएँ अधूरी रहीं
वे व्यर्थ न गयीं
जो फूल खिलने से पहले मुरझा गए
और नदियाँ रेगिस्तानों में खो गयीं
वे भी नष्ट न हुयीं
जो कुछ रह गया पीछे जीवन में
जानता हूँ
निष्फल न होगा
जो मैं गा न सका
हे प्रकृति !
वह तुम्हरे साज पर बजता रहेगा

- विश्व कवि रवींद्र नाथ ठाकुर
26.04.99

तेरी दुनिया से

तेरी दुनिया से होक मजबूर, बहुत दूर चला
मैं बहुत दूर, बहुत दूर , बहुत दूर  चला

इस कदर दूर कि फिर लौट के भी आ न सकूँ
ऐसी मंजिल पे जहाँ खुद को भी पा न सकूँ

आँख भर आई अगर अश्कों को मैं पी लूँगा
आह निकली भी अगर होठों को मैं सी लूँगा

खुश रहे तू है जहाँ ले जा दुआएं मेरी
तेरी राहों से जुदा हो गयीं राहें मेरी
कुछ नहीं साथ मेरे बस हैं खताएं मेरी

- नमालूम

नैना मेरे रंग भरे

नैना मेरे रंग भरे सपने तो सजाने लगे
क्या पता प्यार किस शमां जले न जले

आयेंगे वो आयेंगे मैं सोच-सोच शरमाऊं
क्या होगा क्या न होगा मैं मन ही मन घबराऊं
आज मिलन हो जाये तो समझूँ
दिन बदले मेरे

 जानू न जानू न रूठे-रूठे पिया को मनना
बिंदिया ओ बिंदिया मेरी
मुझे प्रीत की रीत सिखाना
मैं तो सजन कि हो ही चुकी
क्यों न हुए वो मेरे

कजरा ये कजरा मेरी अंखियों का बन गया पानी
टूटा दिल टूटा मेरी तड़प किसी ने न जानी
प्यार का एक पल हाथ लगे न मेरे

- नमालूम
 25.04.99

मेरा जीवन

मेरा जीवन कोरा कागज़ कोरा ही रह गया
जो लिखा था आसुंओं के संग बह गया

इक हवा का झोंका आया टूटा डाली से फूल
न पवन की न चमन की किसकी है ये भूल
खो गयी खुशबू हवा में कुछ न रह गया

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहाँ
न डगर है न खबर है जाना है मुझको कहाँ
बन के सपना, हम सफ़र का साथ रह गया

एम. जी. हसमत

हमने देखी है

हमने देखी है उन आँखों कि महकती खुशबू
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्जाम न दो

सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यारा ही रहने डॉ कोई नाम न दो

प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं
इक ख़ामोशी है सुनती है कहा करती है
न ये बुझती है, न ये रूकती है , न ठहरी है कहीं
नूर कि बूँद है सदियों से बहा करती है

मुस्कराहट सी खिली रहती रहती है आँखों में कहीं
और पलकों पे उजाले से झुके रहते हैं
होंठ कुछ कहते नहीं आँखों से होठों पे मगर
इतने खामोश से अफसाने रुके रहते हैं

- गुलज़ार

ज़िन्दगी का सफ़र है

ज़िन्दगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं

है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
ज़िन्दगी को बहुत प्यार हमने दिया

मौत से भी मुहब्बत निभाएंगे हम
रोते-रोते ज़माने में आये मगर
हँसते-हँसते ज़माने से जायेंगे हम
जायेंगे पर किधर है किसे ये खबर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं

ऐसे जीवन में है जो जिए ही नहीं
ऐसे जीने से पहले मौत आ गयी
फूल ऐसे भी हैं जो खिले ही नहीं
जिनके खिलने से पहले खिजां आ गयी
है परेशां ये मन थक गए पाँव मगर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं

- इन्दीवर