Saturday, May 31, 2014

ज़िन्दगी की धूप

ये जो तुम्हारा रूप है
ये ज़िन्दगी की धूप है
चन्दन से तरसा है बदन
बहती है जिसमें एक अगन
ये सोखियाँ ये मस्तियाँ


तुमको हवाओं से मिलीं
जुल्फें घटाओं से मिलीं
होठों पे कलियाँ खिल गयीं
आँखों को झीलें मिल गयीं
चेहरे में सिमटी चांदनी
आवाज़ में है रागनी


शीशे से जैसा रूप है
फूलों के जैसा रंग है
नदियों के जैसी चाल है
क्या हुस्न है क्या हाल है


ये जिस्म की रंगीनियाँ
जैसे हजारों तितलियाँ
बांहों की ये गोलाईयां
आँचल की ये परछाईयाँ
ये नगरियाँ हैं ख्वाब की


कैसे बताऊँ मैं तुम्हें
हालत दिले बेताब की
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें
मेरे लिए तुम कौन हो
कैसे बताऊँ !!


- नमालूम