Thursday, May 15, 2014

जाने क्या हुआ इस ज़माने को

जाने क्या हुआ इस जमाने को
हक़ भी नहीं देता हाले-दिल सुनाने को
हर तरफ तन्हाई है, फिर भी कहता है मुस्कराने को

इन आंसुओं को अपना मुकद्दर बना लिया
तन्हाईयों के शहर में इक घर बना लिया
सुनते हैं पत्थरों को यहाँ पूजते हैं लोग
इस वास्ते दिल को पत्थर बना लिया

- नमालूम