Thursday, May 15, 2014

संवारती हूँ तुमको

संवारती हूँ तुमको छटक जाते हो मेरे हाथों से
लेते हो परीक्षा धैर्य और साहस कि
बुद्धि और विवेक के छेनी और हथौड़ों से
छीन-छीन कर गढ़ती हूँ तुम्हारी प्रतिमा को
बड़े ही नाजुक हो तुम थोड़े में ही रूठ जाते हो

अदम्य साहस मुझमें है, तुममें साहस भर दूँ
प्यार से सहलाती हूँ तो तुम कमजोर समझते हो
भूल जाते हो, तुम्हारा अनघढ़पन ही मेरी कमजोरी है
तुम्हारा सौन्दर्य, तुम्हारा शिव, तुम्हारा परिष्कार मेरी सफलता है
क्योंकि तुम मेरे जीवन कि अगली कड़ी हो

- डॉ. किरण 'मराली'