Saturday, May 31, 2014

मेरा ख़त पढ़ के

मेरा ख़त पढ़ के हैरत है सबको
प्यार में हमने क्या लिख दिया है
जिसको लिखना था जालिम सितमगर
उसको जाने वफ़ा लिख दिया है

इतना उकता गया है वो खुद से
ज़हर को भी दवा लिख दिया है
ऐसी क्या गुजरी है उसपे
जिसने ज़िन्दगी को सजा लिख दिया है

मेरे महबूब की दिल्लगी भी कोई देखे
तो कितनी हंसी है
ग़ैर का ख़त लिफ़ाफे में रखकर
उसपे मेरा पता लिख दिया है

प्यार झूठा मुहब्बत भी झूठी
अब किसी पे भरोसा न करना
शहर की आज दीवार पर ये
एक पागल ने क्या लिख दिया है

क्या बताऊँतुम्हें आज अशहर
मेरा महबूब कितना खफा है
नाम काग़ज़ पे लिख-लिख के मेरा
हर जगह बेवफा लिख दिया है
मेरा ख़त पढ़ के हैरत है सबको
प्यार में हमने क्या लिख दिया है

- नमालूम
10.05.99