Saturday, May 31, 2014

कमरे पर अकेला शांत बैठा था

कमरे पर अकेला शांत बैठा था
कुछ लिखने की अभिलाषा थी चाहत थी
क्या लिखूं समझ में नहीं आता था
किताबें उलटी, पलटी, देखा खिड़की खोली
दरवाजे खोले और इधर उधर झाँका
कुछ समझ में नहीं आया, दोस्त से पूछा
उत्तर दिय कहानी कैसे लिखते हैं
मुझे नहीं मालूम परन्तु इतना
जरूर मालूम है जब भी विचारक
कुछ लिखता है खुले आसमान के नीचे

जाता है, तलाश कर कमरे के बाहर
रोड के किनारे गया हर भौंपो वाले
वाहन को हाथ दिया, खुले आसमान तक
पहुँचाने का आग्रह किया निराश रहा
अन्तोगत्वा एक टेम्पो वाले से भी यही जिक्र किया
उसने टेम्पो रोका उसका धुंआ
मुख पर फेंका, मैं बौखला गया
वापसकमरे पर आया
बेचैनी थी
कमरे से बाहर मैदान पर गया
रात्री 14:30 का समय था
ठंडा मौसम था
बदन पे पतला शौल था
नीचे अगल बगल देखा
कुछ समझ में नहीं आया
तब आसमान की ओर तिरछी निगाहें रखीं
समझ में आ गया
और कहानी लिख दी-----

- उमेश मिश्रा
09.05.99