Sunday, May 18, 2014

ग़ज़ल

कितनी उम्मीदें ले के खड़ी है
देख ये दुनिया बहुत बड़ी है

आसमान है खफा -खफा सा
धरती भी उखड़ी - उखड़ी है

यूँ  तो बहुत कुछ हो सकता था
यूँ तोअभी एक उम्र पड़ी है

दुःख की घटा भी छट जाएगी
सोच के चल बारिश कि झड़ी है

ध्यान में लेता चल पेड़ों को
राह कठिन और धूप कड़ी है

-नमालूम