Wednesday, May 21, 2014

ज़िन्दगी का सफ़र है

ज़िन्दगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं

है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
ज़िन्दगी को बहुत प्यार हमने दिया

मौत से भी मुहब्बत निभाएंगे हम
रोते-रोते ज़माने में आये मगर
हँसते-हँसते ज़माने से जायेंगे हम
जायेंगे पर किधर है किसे ये खबर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं

ऐसे जीवन में है जो जिए ही नहीं
ऐसे जीने से पहले मौत आ गयी
फूल ऐसे भी हैं जो खिले ही नहीं
जिनके खिलने से पहले खिजां आ गयी
है परेशां ये मन थक गए पाँव मगर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं

- इन्दीवर