Thursday, May 15, 2014

अगर तुम मिल गयी होती !

रात रात भर जगकर
करवटें बदलना
खामोशियों में तुम्हारी
आवाज़ें सुनना
उस वक़्त
अगर तुम मिल गयी होती
तो आज
सन्नाटों से बातें
कौन करता ?

बदन से खून निकालकर
तुम्हें प्रेम पत्र लिखना
लिखकर फाड़ देना
ये सोचकर कि शायद
कुछ कहना बाकी है
उस वक़्त
अगर तुम मिल गयी होती
तो आज
कविताएँ कौन लिखता ?

तुम्हारी मीठी बातें सुनकर
हँसता चेहरा देखकर
सपने में मुस्कुराना
उस वक़्त
अगर तुम मिल गयी होती
तो आज
तकिये में मुंह छिपाकर
कौन सिसकता ?

संजोये था
कुछ बावली तमन्नाएँ
तोड़ कर तारे टांक दूँ तेरे पल्लू में
माथे पर तेरे चाँद कि सजा दूँ बिंदिया
चुटकी में समेटकर इन्द्रधनुष के रंग
बिखेर दूँ तेरी मांग में
अगर ये सब सचमुच हो गया होता
तो आज
तन्हाई से शादी कौन करता ?

- नमालूम