Sunday, May 18, 2014

ग़ज़ल

मुद्दतो, अब तो खबर भी नहीं आती उसकी
इस तरह क्या कोई अपनों को भुला देता है

किस तरह बात लिखूं दिल की उसे
वो अक्सर दोस्तों को मेरे ख़त पढ़ के सुना देता है

सामने रख के निगाहों के वो तस्वीर मेरी
अपने कमरे के चिरागों को बुझा देता है

जाने किस बात कि वो मुझको सजा देता है
मेरी हंसती आँखों को वो रुला देता है

मैं भी देखूंगी तुझे मांग कर उससे एक दिन
लोग कहते हैं कि मांगों तो खुदा देता है

- नमालूम