Sunday, May 18, 2014

यातनाएं

मेरे मन में खड़े
तुम्हरी स्मृतियों के
बर्फीले  पहाड़
जब बहते हैं गलकर
नयनों के कोरोंसे, तो
गीली हो जाती हैं
शुष्क पड़ी भावनाएं

जागृत हो उठता है
तेरे स्पर्श का अहसास
दौड़ने लगता है लहू में
तेरे स्वर का स्पंदन
रोम-रोम थिरकने लगता है
धडकनों की तान पर
जेठ भी लगता है मधुमास

फिर अचानक उठता है तूफ़ान
चीखने लगती हैं वासनाएं
छा जाते हैं यौवन के बादल
कौंधने लगती हैं कामनाएं
बरबस मन पहुँच जाता है तेरे पास
पर तू खोयी-खोयी सी बैठी है
एकदम गुमसुम - चुपचाप
घुटनों में अपना सिर छुपाये

चाहा लगा लूँ तुझको सीने से
चूम लूँ तेरे मासूम चेहरे को
किन्तु दूर- दूर तक फैली ख़ामोशी में
मुझे घेर लेते हैं रिश्ते के साए

तार-तार हो जाती हैं श्रंखलायें
यकायक पथरा जाती हैं भावनाएं
शांत हो जाती हैं वासनाएं
दम तोड़ देती है हैं कामनाएं
शून्य में पाता हूँ अपने आपको
और रह जाती हैं शेष
बस यातनाएं

- नमालूम