Sunday, June 1, 2014

सोच रहा हूँ

शायर हूँ कोई ताजा ग़ज़ल सोच रहा हूँ
फुटपाथ पे बैठा हूँ महल सोच रहा हूँ

गुजरे जो तेरे साथ वो पल सोच रहा हूँ
ये वक़्त भी जायेगा निकल सोच रहा हूँ

क्या होगा मेरे देश का कल सोच रहा हूँ
उलझा है जिस सवाल का हल सोच रहा हूँ

मस्जिद में पुजारी हो तो मंदिर में शेख जी
हो किस तरह ये रद्दो बदल सोच रहा हूँ

कहते हैं सभी लोग कि लायेंगे इन्कलाब
लेकिन करेगा कौन पहल सोच रहा हूँ

ये वक़्त तो मुश्किल से मेरे हाथ लगा है
ये हाथ  से जाए न फिसल सोच रहा हूँ

उस फूल के बदन को कहूँ क्या मैं 'कंबरी'
जूही, गुलाब, बेला, कमल सोच रहा हूँ

- कम्बरी