Sunday, June 8, 2014

ग़म बहुत खुद्दार हैं उनके यहाँ जाते नहीं

ग़म बहुत खुद्दार हैं उनके यहाँ जाते नहीं
जिनके घर में उनकी कोई पूछगछ होती नहीं

मांग लेना रंग सूरज एक दिन अपने सभी
एक तितली रात भर इस खौफ से सोती नहीं

जो उजाले मांगते हैं उनको डस लेती है धूप
छाँह कन्धों पर कभी भी धूप को धोती नहीं

आँख से झरकर गिरी हैं ख्वाब वाली चाहतें
भर गया दामन पर उसमें एक भी मोती नहीं

- नमालूम