ग़म बहुत खुद्दार हैं उनके यहाँ जाते नहीं
जिनके घर में उनकी कोई पूछगछ होती नहीं
मांग लेना रंग सूरज एक दिन अपने सभी
एक तितली रात भर इस खौफ से सोती नहीं
जो उजाले मांगते हैं उनको डस लेती है धूप
छाँह कन्धों पर कभी भी धूप को धोती नहीं
आँख से झरकर गिरी हैं ख्वाब वाली चाहतें
भर गया दामन पर उसमें एक भी मोती नहीं
- नमालूम
जिनके घर में उनकी कोई पूछगछ होती नहीं
मांग लेना रंग सूरज एक दिन अपने सभी
एक तितली रात भर इस खौफ से सोती नहीं
जो उजाले मांगते हैं उनको डस लेती है धूप
छाँह कन्धों पर कभी भी धूप को धोती नहीं
आँख से झरकर गिरी हैं ख्वाब वाली चाहतें
भर गया दामन पर उसमें एक भी मोती नहीं
- नमालूम