Thursday, June 5, 2014

सहज अभिव्यक्ति

सहज अभिव्यक्ति को ऐसी मिली अद्भुत रवानी है
नयों में यह नयी पुरानों में पुरानी है

लगी है बोलने खुलकर नहीं तुत्लाहटें बाकी
हमारी साधना सचमुच हुयी कितनी सयानी है

मिटाते जा रहे फिर भी सभी पग चिन्ह राहों से
समय आकर स्वयं खोजे कहाँ किसकी निशानी है

कि जिसने युग बदल डाले रंगे इतिहास के पन्ने
रहेगी जो अमर जग में शहीदों की जवानी है

कंटीली प्यास आखिर क्या बिगाड़ेगी हमारा कुछ
कहीं कुछ भी न हो बाकी अभी आँखों में पानी है

नहीं है यह ग़ज़ल कोई न कोई गीत या कविता
'मधुर' के दर्द का स्वर है नहीं कोई कहानी है

- 'मधुर'