Tuesday, June 3, 2014

एक अनसुलझा रिश्ता

एक अनसुलझा रिश्ता , अनजाना सम्बन्ध
एक अनसुलझी पहेली से उलझता जा रहा हूँ मैं
मैं इस रिश्ते को नाम नहीं देना चाहता
परन्तु संसार ने इसको नाम दे दिया है प्रेम का
मैं इसे झुठलाता हूँ
बहुत अंतर्द्वंद होता है मन में
परन्तु अब थक चुका हूँ
लड़ते-लड़ते अपने मन से
मजबूर हो गया हूँ
इस तथ्य को स्वीकार करने के लिए
हाँ! शायद मुझे प्यार हो गया है
कोई अब बतलाये
किसके सहारे ही खड़ा रहूँ
एक दिए की तरह तूफ़ान में
हाँ ! मुझे जरूरत है
एक सहानुभूति की
एक स्नेह-सिक्त दृष्टि की
ताकि मैं पा सकूँ
किनारा , प्रेम रुपी मझधार में
शायद,
तुम्हरे प्रेम का भंवर ही
मेरा किनारा है ..

- 'अमरजीत'