Friday, June 6, 2014

जितने लम्हे उधार लाते हैं

जितने लम्हे उधार लाते हैं
सांस ही सांस में चुकाते हैं

तेरी महफ़िल में कुछ  तो है वरना
लोग क्यों बार बार आते हैं

अपनी सूरत से खुद परेशां हैं
आप क्यों आईना दिखाते हैं

तुझको वो खोजते जन्म - जन्मों
जो पता खुद का भूल जाते हैं

बूँद हूँ मैं वजूद मेरा क्या
पर समंदर भी डूब जाते हैं

- नमालूम
24.07.99