जितने लम्हे उधार लाते हैं
सांस ही सांस में चुकाते हैं
तेरी महफ़िल में कुछ तो है वरना
लोग क्यों बार बार आते हैं
अपनी सूरत से खुद परेशां हैं
आप क्यों आईना दिखाते हैं
तुझको वो खोजते जन्म - जन्मों
जो पता खुद का भूल जाते हैं
बूँद हूँ मैं वजूद मेरा क्या
पर समंदर भी डूब जाते हैं
- नमालूम
24.07.99
सांस ही सांस में चुकाते हैं
तेरी महफ़िल में कुछ तो है वरना
लोग क्यों बार बार आते हैं
अपनी सूरत से खुद परेशां हैं
आप क्यों आईना दिखाते हैं
तुझको वो खोजते जन्म - जन्मों
जो पता खुद का भूल जाते हैं
बूँद हूँ मैं वजूद मेरा क्या
पर समंदर भी डूब जाते हैं
- नमालूम
24.07.99