Thursday, June 5, 2014

जिन्हें हम भूलना चाहें

जिन्हें हम भूलना चाहें  वो अक्सर याद आते हैं
बुरा हो इस मुहब्बत का वो क्यों कर याद आते हैं

भुलाएँ किस तरह उनको कभी पी थी उन आँखों से
छलक जाते हैं जब आंसू वो सागर याद आते हैं

किसी के सुर्ख लब थे या दिये की लौ मचलती थी
जहाँ की थी कभी पूजा वो मंदिर याद आते हैं

रहे ऐ शम्मा तू रोशन दुआ देता है है परवाना
जिन्हें किस्मत में जलना है वो जलकर याद आते हैं

- नमालूम