आज भी उन दिनों को याद कर मन में एक कम्पन पैदा हो जाता है . एक पीड़ा समूचे असितत्व को घेर लेती है. नंदनी, कभी-कभी ऐसा क्यों होता है कि कोई व्यक्ति हमारे लिए समूचा संसार बन जाता है ? उस समय ऐसा लगता है , हमारी सारी प्रसन्नता , हमारा सब कुछ उस व्यक्ति पर निर्भर है हमारा जीवन , हमारी मुक्ति भी उस पर आधृत है .
- नमालूम
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