Wednesday, June 11, 2014

लेकर रिमझिम फुहारें

आज फिर सावन आया
लेकर रिमझिम फुहारें
चहुँ ओर पक्षी बोले
बच्चे भीगे ले किलकारें
हमें भी अपना बचपन याद आया
जब खेला करते थे हाट बजारें
वो बचपन की गुजरी फुहारें

कर  गया नम पलकों की कतारें
अब बोझिल हो चला मन
एक सूनापन आ रहा पैर पसारे
जीवन अब एक संग्राम बन गया
फिर भी यह आश है
एक दीपक आएगा पुंज पसारे
जो जीवन में भर देगा हिल्कारें

- 'अज्ञात'
04.09.99