Tuesday, June 10, 2014

वो चांदनी का बदन खुशबुओं का साया है

वो चांदनी का बदन खुशबुओं का साया है
बहुत अजीज़ हमें है पर पराया है

उतर भी आओ कभी आसमां के सीने से
तुम्हें खुदा ने हमारे लिए बनाया है

उसे किसी की मुहब्बत का एतवार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है

महक रही है जमीं चांदनी के फूलों से
खुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कराया है

- नमालूम
03.09.99