Wednesday, June 11, 2014

स्त्री कितनी ही बुद्धिमती हो

स्त्री कितनी ही बुद्धिमती हो, कितनी भी साहसी हो, परन्तु जीवन के ऐसे अवसरों पर, जब वह किसी पुरुष को चाहने लगती है. वह सब कुछ भुला बैठती है. वास्तव में ऐसे अवसरों पर वह अपनी स्वामिनी स्वयं नहीं होती है. वह बेबस कठपुतली की तरह चलती है और उसे चलाने वाला होता है वह पुरुष ,  जिसे वह उस समय भगवान से भी अधिक समझती है.

- नमालूम