स्त्री कितनी ही बुद्धिमती हो, कितनी भी साहसी हो, परन्तु जीवन के ऐसे अवसरों पर, जब वह किसी पुरुष को चाहने लगती है. वह सब कुछ भुला बैठती है. वास्तव में ऐसे अवसरों पर वह अपनी स्वामिनी स्वयं नहीं होती है. वह बेबस कठपुतली की तरह चलती है और उसे चलाने वाला होता है वह पुरुष , जिसे वह उस समय भगवान से भी अधिक समझती है.
- नमालूम
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