Tuesday, June 3, 2014

चुपके-चुपके रात दिन

चुपके-चुपके रात दिन  आंसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

बाहज़ारां इज़्तराब वसद हजारां इश्त्याक
तुझ से वो पहले पहल दिल का लगाना याद है

तुझ से कुछ  मिलते ही वो बेबाक हो जाना मेरा
और तेरा दांतों में वो अंगुली दबाना याद है

खींच लेना वो मेरा परदे का कोना दफातन
और दुपट्टे से तेरा वो मुंह छिपाना याद है

तुझ को जब तन्हा कहीं पाना तो अज़राह लिहाज
हाले दिल बातों ही बातों में जताना याद है

गैर की नज़रों से बचकर सब की मर्जी के खिलाफ
वो तेरा चोरी छिपे रातों को आना याद है

दोपहर को धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है

चोरी-चोरी हमसे तुम आकर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुजरीं पर अब तलक वो ठिकाना याद है

- नमालूम
10.06.99