मैं भूल जाऊं तुम्हें
अब यह मुनासिब नहीं
मगर भूलना भी चाहूँ
तो किस कदर भूलूँ
कि तुम तो फिर भी हक़ीकत हो
कोई ख्वाब नहीं
यहाँ तो दिल का ये आलम है
क्या कहूँ- कमबख्त
भूल न पाया ये वो सिलसिला
जो था ही नहीं
वो इक ख्याल
जो आवाज़ तक गया ही नहीं
- नमालूम
अब यह मुनासिब नहीं
मगर भूलना भी चाहूँ
तो किस कदर भूलूँ
कि तुम तो फिर भी हक़ीकत हो
कोई ख्वाब नहीं
यहाँ तो दिल का ये आलम है
क्या कहूँ- कमबख्त
भूल न पाया ये वो सिलसिला
जो था ही नहीं
वो इक ख्याल
जो आवाज़ तक गया ही नहीं
- नमालूम