Wednesday, June 11, 2014

.......... ऐसा लग रहा था मानो

.......... ऐसा लग रहा था मानो मुझे सब कुछ मिल गया था और उसके बाद मुझे किसी अन्य वस्तु की जरूरत न थी. मेरे मन का प्याला छलकने लगा था, अब उसमें एक बूँद भी जगह नहीं थी. रात की खामोशी में मुझे सुकून मिल रहा था. मुझे यह सोचते हुए आश्चर्य लग रहा था कि ऋषि - मुनि हिमालय की कंदराओं में जाकर शान्ति की प्राप्ति की तपस्या क्यों करते हैं. इस दुनिया में ही किसी प्रियजन के पार्श्व में बैठकर भी सम्पूर्ण शान्ति प्राप्त की जा सकती है. ऐसे समय में पूर्णतः के क्षणों को बार-बार छुआ जा सकता है. सुदूर को अपने ही निकट पाया जा सकता है.

- नमालूम